कूर्मचक्र और पर्यावरण

Author
आचार्या स्मिता पण्‍डित
ज्‍योतिषाचार्या

पर्यावरण अर्थात मनुष्य और उसके चारो  तरफ का वातावरण | इस वातावरण के  अंतर्गत सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, जलवायु सभी निहित हैं | यदि हम इन्हे ज्योतिष के चश्मे से देखे तो पर्यावरण ज्योतिष का ही पर्याय है | ज्योतिष अर्थात सूर्यादि ग्रहाणां नक्षत्राणां बोधकं शास्त्रम्| वेदों के छः  अंगों मे एक अंग ज्योतिष है जिसे नेत्र की  संज्ञा दी गयी हैं और इन ज्योतिष रूपी नेत्रों से हम पर्यावरण को देखते, जानते एवं समझते हैं |

वेदों और पुराणों मे पर्यावरण को संरक्षित करने की बात कही है | हमारा पर्यावरण ज्योतिषीय ग्रहों से अत्यंत प्रभावित हैं | सूर्य, चंद्र , पृथ्वी एवं अन्य सभी ग्रहों की गति पर्यावरण को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते है |  सूर्य सिद्धांत में  आठ प्रकार की गतियों  वर्णन मिलता हैं | यथा

वक्रातिवक्रा विकला  मंदा मंदतरा समां | शीघ्रा शीघ्रतरा ज्ञेया  गृहाणामष्टधा गतिः ||

वेदों में पर्यावरण को लेकर कहा गया है 

       पृथ्वी हमारे लिए कंटकहीन और उत्तम रहने योग्य हो | ( ऋग्वेद ७/३५/३ तथा यजुर्वेद ३६/१३ )

       हमारे दर्शन के लिए अंतरिक्ष शांतिप्रिय हो ( ऋग्वेद १०/३५/५/)

       सूर्य हमारे लिए सुखकारी तपे(यजुर्वेद ३६/१० ) |

       चन्द्रमा हमारे लिए सुख-रूप हो( ऋग्वेद ७/३५/७ ) |

       नदी, समुद्र और जल हमारे लिए सूखगामी हों( ऋग्वेद ७/३५/८ )  |

       वायु हमारे लिए सुख-रूप होकर बहे( ऋग्वेद ७/३५/४ ) |

       पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षों का संरक्षण आवश्यक है | (अथर्ववेद ६/१०/६) |

हमारे आचार्यों ने ज्योतिष को तीन भागो मे बाटा  हैं  सिद्धांत, संहिता और होरा | पर्यावण मे  घटित होने वाली घटनाओं का अध्ययन हम संहिता ज्योतिष में  करते हैं |   आचार्य वराहमिहिर जी ने कूर्मचक्र की कल्पना की  जिसमे सम्पूर्ण पृथ्वी के पर्यावरण में  घटित होने वाली घटनाओं का संकेत प्राप्त किया जा सकता हैं | कूर्मचक्र के पांच भेद है  १. पृथ्वी कूर्म २. देश कूर्म ३. नगर कूर्म ४. क्षेत्र कूर्म ५. वास्तु कूर्म | इन पांचों से क्रमशः भूमण्डल, देश, नगर, बस्ती तथा भवन का शुभाशुभ देखा जाता है |

कूर्मचक्र की पीठ में अर्थात् मध्य में कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा नक्षत्र स्थापित करें |

कूर्मचक्र के पूर्व में  मुख पर आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्र स्थापित करे |

आगे के दाहिने पैर  (अग्नि कोण) में अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र तथा दाहिनी कुक्षी (दक्षिण दिशा) में  उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा नक्षत्र स्थापित करें |

पिछले दाहिने पैर  (नैऋत्यकोण) में स्वाति, अनुराधा, विशाखा नक्षत्र स्थापित करें |

कूर्मचक्र की पूंछ (पश्चिम दिशा) में ज्येष्ठा , मूल, पूर्वाषाढ़ा तथा पिछले बाये पैर  (वायव्यकोण) में  उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा नक्षत्र स्थापित करें |

कूर्मचक्र की बायीं कुक्षी (उत्तर दिशा) में शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र स्थापित करें |

कूर्मचक्र के आगे के बाये पैर (ईशानकोण) में रेवती, अश्विनी, भरणी  नक्षत्र स्थापित करें |

 

नक्षत्रों के नौ वर्ग कथन -

नक्षत्रत्रयवगैराग्नेयाद्यैर्व्यवस्थितैर्नवधा । भारतवर्षे मध्यप्रागादिविभाजिता देशाः ||

भाषा - सत्ताईश नक्षत्रों को नौ वर्गों में विभाजित करने से.प्रत्येक वर्ग में कृत्तिका आदि नक्षत्र क्रम से तीन-तीन नक्षत्र होते हैं। इन नौ वर्गों में मेरु से दक्षिण भाग में स्थित भारत वर्ष को मध्य स्थान में मानकर अन्य देशों को पूर्व आदि क्रम से व्यवस्थितमाना गया है।

कृत्तिका आदि तीन नक्षत्रों के प्रथम वर्गस्थ मध्य देशों के नाम -

भद्रारिमेदमाण्डव्यसाल्वनीपोज्जिहानसंख्याता: मरुवत्सघोषयामुनसारस्वतमत्स्यमाध्यमिकाः ॥२॥

माथुरकोपज्योतिषधर्मारण्यानि शूरसेनाश्च गौरग्रीवोद्देहिकपाण्डुगुडाश्वत्थपाश्चाला: ॥३॥

साकेतकङ्ककुरुकालकोटिकुकुराश्य पारियात्रनगः। औदुम्बरकापिष्ठलगजाह्वयाति मध्यमिदम्।।४।।

भाषा - प्रथम कृत्तिकादि तीन नक्षत्रों के वर्ग में भद्र, अरिमेद, माण्डव्य, साल्व, नीप, उज्जिहान, संख्यात, मरु, वत्स, घोष, यामुन, सारस्वत, मत्स्य, माध्यमिक, माथुर, उपज्योतिष, धर्मारण्य, शूरसेन, शौरग्रीव, उद्देहिक, पाण्डु, गुड, अश्वत्थ, पाञ्चाल,

साकेत, कङ्क, कुरु, कालकोटि, कुकुर, पारियात्रनग, औदुम्बर, कापिष्ठल तथा हस्तिनापुर; ये सभी मध्य देश भारतवर्ष के प्रधान विभाग हैं।

आर्द्रा आदि तीन नक्षत्रों के द्वितीय वर्गस्थ पूर्वीय देशों के नाम -

अथ पूर्वस्यामञ्जनवृषभध्वजपद्ममाल्यवगिरयः |व्याघ्रमुखसुह्मकर्वटचान्द्रपुरा: शूर्पकर्णाश्च ||

खसमगधशिबिरगिरिमिथिलसमतटोड्रायवदनदन्तुरकाः |प्राग्ज्योतिषलौहित्यक्षीरोदसमुद्रपुरुषादाः ||

उदयगिरिभद्रगौडकपौण्ड्रोत्कलकाशिमेकलाम्बष्ठाः | एकपदताम्रलिप्तककोशलका वर्धमानाश्च ||

भाषा - द्वितीय आर्द्रा आदि तीन नक्षत्रों के वर्ग में अञ्जन, वृषभध्वज, पद्म, माल्यवानगरि, व्याघ्रमुख, सुह्म, कर्वट, चान्द्रपुर, शूर्पकर्ण, खस, मगध, शिबिरगिरि, मिथिला, समतट, ओडू, अश्ववदन, दन्तुरक, प्राग्ज्यौतिष, लौहित्यनद, क्षीरोदसमुद्र, पुरुषाद, उदयगिरि, भद्र, गौडक, पौण्ड्र, उत्कल, काशी, मेकल, अम्बष्ठ, एकपद, ताम्रलिप्तक, कोशलक, वर्धमान आदि सभी पूर्व दिशा के प्रधान देश है|

श्लेषादि तीन नक्षत्रों के तृतीय वर्गस्थ आग्नेय देशों के नाम -

आग्नेय्यां दिशि कोशलकलिङ्गवनोपवङ्गजठराङ्गाः  शौलिकविदर्भवत्सान्ध्रचेदिकाश्चोर्ध्वकण्ठाश्च |

वृषनालिकेरचर्मद्वीपा विन्ध्यान्तवासिनस्त्रिपुरी  श्मश्रुधरहेमकुड्यव्यालग्रीवा महाग्रीवाः ||

किष्किन्धकण्टकस्थलनिषादराष्ट्राणि पुरिकदाशार्णाः | सह नग्नपर्णशबरैराश्लेषाद्ये त्रिके देशाः ||

भाषा - तृतीय श्लेषा आदि तीन श्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रों के वर्ग में कोशल, कलिङ्ग, बङ्ग, उपवङ्ग, जठराङ्ग, शौलिक, विदर्भ, वत्स, आन्ध्र, चेदिक, ऊर्ध्वकण्ठ, वृष, नालिकेर, चर्मद्वीप, विन्ध्याचल के समीपस्थ क्षेत्र, त्रिपुरी, श्मश्रुधर, हेमकूट, व्यालग्रीव, महाग्रीव, किष्किन्धा, कण्टकस्थल, निषादराष्ट्र, पुरिक, दशार्ण, नग्नशबर, पर्णशबर आदि सभी आग्नेय कोण में स्थित प्रधान देश कहे गये हैं |

उत्तराफाल्गुनी आदि तीन नक्षत्रों के चतुर्थ वर्गस्थ दक्षिणी देशों के नाम –

अथ दक्षिणेन लङ्काकालाजिनसौरिकीर्णतालिकटाः | गिरिनगरमलयद१रमहेन्द्रमालिन्द्यभरुकच्छाः ||

कङ्कटकङ्कणवनवासिशिबिकफणिकारकोङ्कणाभीराः | आकरवेणावर्तकदशपुरगोनर्दकरलकाः||

कर्णाटमहाटविचित्रकूटनासिक्यकोल्लगिरिचोलाः | क्रौञ्चद्वीपजटाधरकावेर्यो रिष्यमूकश्च ||

वैदूर्यशङ्खमुक्तात्रिवारिचरधर्मपट्टनद्वीपा | गणराज्यकृष्णवेल्लूरपिशिकशूर्पाद्रिकुसुमनगाः ||

तुम्बवनकार्मणयकयाम्योदधितापसाश्रमा ऋषिकाः | काश्चीमरुचीपट्टनचेर्यार्यकसिंहला ऋषभाः ||

बलदेवपट्टनं दण्डकावनतिमिङ्गिलाशना भद्राः | कच्छोऽथ कुञ्जरदरी सताम्रपर्णीति विज्ञेयाः ||

भाषा - चतुर्थ उत्तराफाल्गुनी आदि तीन उत्तराफाल्गुनी, हस्त और चित्रा नक्षत्रों के वर्ग में लङ्का, कालाजिन, सौरिकर्ण, तालिकाट, गिरिनगर, मलयपर्वत, दर्दुर, महेन्द्र, मालिन्द्य, भरूकच्छ, कङ्कट, कङ्कण, वनवासी, शिबिक, फणिकार, कोङ्कण, अभीर, आकर, वेण, आवर्तक, दशपुर, गोनर्द, केरल, कर्णाट, महाटवी, चित्रकूट पर्वत, नासिक्यदेश, कोल्लगिरि, चोल, क्रौञ्चद्वीप, जटाधर, कावेरी नदी, ऋष्यमूक पर्वत, वैदूर्य, शङ्खमुक्ताकर देश, अत्र्याश्रम, वारिचर, धर्मपुरद्वीप, गणराज्य, कृष्णवेल्लूर, पिशिक, शूर्पाद्रि, कुसुमनग, तुम्बवन, कार्मणेयक, दक्षिण समुद्र, तापसाश्रम, ऋषिक, काञ्ची, मरुचीपट्टन, चैर्य, आर्यक, सिंहल, ऋषभ, बालदेव, पट्टन, दण्डकावन, तिमिलिङ्गाशन, भद्र, कच्छ, कुञ्जरदरी, ताम्रपर्णी आदि सभी दक्षिण दिशा में स्थित प्रधान देश परिगणित हैं |

स्वाती आदि तीन नक्षत्र के पञ्चमवर्गस्थ नैर्ऋत्यदिस्थित देशों के नाम  -

नैर्ऋत्यां दिशि देशा: पहवकाम्बोजसिन्धुसौवीराः | वडवामुखारवाम्बष्ठकपिलनारीमुखानर्ताः ||

फेणगिरियवनमार्गरकर्णप्रावेयपारशवशूद्राः | बर्बरकिरातखण्डक्रव्यादाभीरचचूकाः ||

हेमगिरिसिन्धुकालकरैवतकसुराष्ट्रबादद्रविडाः | स्वात्याचे भत्रितये ज्ञेयश्च महार्णवोऽत्रैव ||

भाषा - पञ्चम स्वाती आदि तीन स्वाती, विशाखा और अनुराधानक्षत्र के वर्ग में पहव, काम्बोज, सिन्धु, सौवीर, वडवामुख, अरब, अम्बष्ठ, कपिल, नारीमुख, आनर्त, फेणगिरि, यवन, मार्गर, कर्ण प्रावेय, पारशव, शूद्र, बर्बर, किरात, खण्ड, क्रव्याद, आभीर, चञ्चूक, हेमगिरि, सिन्धुनद, कालक, रैवतक, सुराष्ट्र, बादर, द्रविड आदि सभी नैर्ऋत्य कोणीय प्रमुख देश परिगणित हैं |

ज्येष्ठादि तीन नक्षत्रों के षड्वर्गस्थ पश्चिमीय देशों के नाम -

अपरस्यां मणिमान् मेघवान् वनौघः क्षुरार्पणोऽस्तगिरिः | अपरान्तकशान्तिकहैहयप्रशस्ताद्रिवोक्काणाः ||

पञ्चनदरमठपारततारक्षितिजृङ्गवैश्यकनकशकाः |निर्मर्यादा म्लेच्छा ये पश्चिमदिक्स्थितास्ते च ||

भाषा - षष्ठम ज्येष्ठा आदि तीन ज्येष्ठा, मूल और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रों के वर्ग में मणिमान्, मेघवान्, वनौघ, क्षुरार्पण, अस्तगिरि, अपरान्तक, शान्तिक, हैहय, प्रशस्ताद्रि, वोक्काण, पञ्चनद, रमठ, पारत, तारक्षिति, जुङ्ग, वैश्य, कनक, शक, अन्य मर्यादा रहित पश्चिम दिशा के जनगण म्लेच्छ जाति आदि सभी पश्चिम दिशा में स्थित प्रधान देशों की परिगणना होती है |

उत्तराषाढ़ा आदि तीन नक्षत्रों के सप्तवर्गस्थ वायव्य दिकस्थित देशों के नाम -

दिशि पश्चिमोत्तरस्यां माण्डव्यतुषारतालहलमद्राः | अश्मककुलूतहलडाः स्त्रीराज्यनृसिंहवनखस्थाः ||

वेणुमती फल्गुलुका गुलुहा मरुकुच्चचर्मरङ्गाख्याः | एकविलोचनशूलिकदीर्घग्रीवास्यकेशाच ||

भाषा - सप्तम उत्तराषाढ़ा आदि तीन उत्तराषाढ़ा, श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्रों के वर्ग में माण्डव्य, तुषार, ताल, हल, मद्र, अश्मक, कुलत, हलड, स्त्रीराज्य, नृसिंहवन, खस्थ, वेणुमती नदी, फल्गुलुका, गुलुहा, मरूकुच्छ, चर्मरङ्ग, एकविलोचन, शूलिक, दीर्घ ग्रीव, आस्यकेश आदि सभी वायव्य कोणीय प्रधान देश कहे गए हैं |

शतभिषा आदि तीन नक्षत्रों के अष्टमवर्गस्थ उत्तरीय देशों के नाम -

उत्तरतः कैलासो हिमवान् वसुमान् गिरिधनुष्मांश्च | क्रौञ्चो मेरुः कुरवस्तथोत्तराः क्षुद्रमीनाश्च ||

कैकयवसातियामुनभोगप्रस्थार्जुनायनाग्नीघ्राः | आदर्शान्तीपित्रिगर्ततुरगाननाः श्वमुखाः ||

केशधरचिपिटनासिकदासेरकवाटधानशरधानाः | तक्षशिलपुष्कलावतकैलावतकण्ठधानाच ||

अम्बरमद्रकमालवपौरवकच्छारदण्डपिङ्गलकाः | माणहलहूणकोहलशीतकमाण्डव्यभूतपुरा: ||

गान्धारयशोवतिहमतालराजन्यखचरगव्याश्च | यौधेयदासमेयाः श्यामाकाः क्षेमधूर्ताश्च ||

भाषा - अष्टम शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा और उत्तराभाद्रपदा तीन नक्षत्रों के वर्ग में कैलाश, हिमवान्, वसुमान्, धनुष्मान्, क्रौञ्च, मेरूगिरि, उत्तरकुस, क्षुद्रमीन, कैकय, वसाति, यामुन, भोगप्रस्थ, अर्जुनायन, आग्नीध्र, आदर्श, आन्तीपी, त्रिगर्त, तुरगानन, श्वमुख, केशधर, चिपिटनासिक, दासेरक, वाटधान, शरधान, तक्षशील, पुष्कलावत, कैलावत, कण्ठधान, अम्बर, मद्रक, मालव, पौरव, कच्छार, दण्डपिङ्गलक, माणहल, हूण, कोहल, शीतक, माण्डव्य, भूतपुर, गान्धार, यशोवती नगरी, हेमताल, राजन्य, खचर, गव्य, यौधेय, दासमेय, श्यामक, क्षेमधूर्त आदि सभी उत्तर दिशा में स्थित प्रधान देश परिगणित हैं |

रेवती आदि तीन नक्षत्रों के नवम वर्गस्थ ईशान कोणीय देशों के नाम -

ऐशान्यां मेरुकनष्टराज्यपशुपालकीरकाश्मीराः | अभिसारदरदतङ्गणकुलूतसैरिन्ध्रवनराष्ट्राः||

ब्रह्मपुरदार्वडामरवनराज्यकिरातचीनकौणिन्दाः | भल्ला: पटोलजटासुरकुनटखसघोषकुचिकाख्याः ||

एकचरणानुविद्धाः सुवर्णभूर्वसुघनं दिविष्ठाश्च | पौरवचीरनिवासित्रिनेत्रमुञ्जाद्रिगान्धर्वाः ||

भाषा - नवम रेवती, अश्विनी और भरणी तीन नक्षत्रों के वर्ग में मेरुक, नष्टराज्य, पशुपाल, कीर, काश्मीर, अभिसार, दरद, तङ्गण, कुलूत, सैरिन्ध्र, वनराष्ट्र, ब्रह्मपुर, दार्वडामर, वनराज्य, किरात, चीन, कौणिन्द, भल्ल, पटोल, जटासुर, कुनट, खस, घोष, कुचिक, एकचरण, अनुविद्ध, सुवर्णभू, वसुधन, दिविष्ट, पौरव, चीरनिवासी, त्रिनेत्र, मुञ्जाद्रि, गन्धर्व आदि सभी ईशान कोण के प्रधान देशों के नाम परिगण्य हैं|

कृत्तिकादि नक्षत्रों के वर्ग फल कथन -

वगैराग्नेयाथैः क्रूरग्रहपीडितैः क्रमेण पाञ्चालो | मागधिकः कालिङ्गश्च क्षयं यान्ति ||

आवन्तोऽथान” मृत्यं चायाति सिन्धुसौवीरः | च हारहौरो मद्रेशोऽन्यश्च कौणिन्दः ||

भाषा - नौ वर्गों के कृत्तिका आदि नक्षत्र पापग्रह से पीड़ित होने पर क्रमशः पाञ्चाल, मगध, कलिङ्ग, अवन्ती, आनर्त, सिन्धु, सौवीर, हारहौर, मद तथा कौलिन्द देश के राजाजनों की हानि होती है|

कूर्मचक्र फलादेश विचार :-

फल विचार के लिए पाप ग्रहों की युति या वेद का विचार करना चाहिए | जिस दिशा के नक्षत्रों में अधिक पाप ग्रह हों, और यदि वक्री, नीचगत, अस्तंगत हो, उस तरफ के स्थानों में उपद्रव, युधः, विनाश, भय, अशांति, प्राकृतिक, राजनैतिक प्रकोप का निवास होता है| कूर्मचक्र में वेद सीधी रेखाओं पर होता है जैसे पूर्व का पश्चिम से, उत्तर का दक्षिण से, ईशान का नैऋत्य से, अग्निकोण का वायव्य से वेद कहा गया है |

कृत्तिकादीनि धिष्ण्यानित्रीणित्रीणि कर्मान्न्यसेत् | नाभेर्दिक्षु नवान्गेषु पापैर्दुष्टं शुभैः शुभम् ||

भाषा - कूर्मचक्र के विभक्त नवमण्डलो मे क्रमशः कृत्तिका आदि तीन-तीन नक्षत्रो को स्थापित करें।जिस अंग पर पाप ग्रहो की स्थिति हो उन अंगो के मंडल मे आने वाले देशो को कष्ट होता है और जिस अंग पर शुभ ग्रहो की स्थिति हो उस अंग के मंडल मे आने वाले देश सुखी होते है |

समाससंहिता ग्रन्थ मे भी ऐसा ही श्लोक मिलता है-

कूर्मविभागेन वदेत् पीडां दृश्य वीक्ष्य नक्षत्रम्। सहितं ग्रहणं येन तद्देशश्र्चाप्नुयात्पीडाम्।।

धार्मिक महत्व-

          विष्णु पुराण मे भारतवर्ष तथा समस्त पृथ्वी को 27 नक्षत्रो मे बाटा गया है तथा ग्रहो के गोचर के माध्यम से शुभाशुभ घटनाओ को देखने के लिए कूर्मचक्र का वर्णन किया गया है।कूर्मचक्र की प्राचीन  विधि के विषय मे आज से डेढहजार वर्ष पूर्व आचार्य वराहमिहिर जी ने अपना ग्रन्थ बृहत्संहिता मे उस समय के अनेक प्रदेशो और राज्यो का वर्णन किया। महापुराणो की सूची मे पन्द्रहवे पुराण के रूप  मे कूर्म पुराण का विशेष महत्व है।सहस्र श्लोको का यह पुराण विष्णुजी ने कूर्म अवतार से राजा इन्द्रद्युम्न को दिया था |

सारांश : पर्यावरण को प्रभावित करने वाले ग्रह  और उनके कारकत्व :

सूर्य - गर्मी, कांटेदार पेड़ और अग्नितत्व

चंद्र - सब्जियां, फूल, मछली तथा जल में  उत्पन्न होने वाले जीव, हरे भरे पेड़ों से सजे जंगल

मंगल - भूमि या जमीन, बाग़-बगीचा, गर्मी की ऋतु, वनचारी , वृक्ष

बुध - ऋतु, पक्षी, हरे पौधें

गुरु - घोडा, गाय, महीने का सूचक, मिठास/मधुरस

शुक्र - खट्टे फल, पक्ष/पंद्रह दिनों का सूचक, बसंत ऋतु, जलीय स्थान

शनि - शिशिर ऋतु, काळा रंग के फल, अनाज, वनों में  भ्रमण करने वाले जीव

राहु - जंगल , पर्वत, रात्रि की हवाएं, जंतु

केतु - मरुस्थल, वनौषधिया

इसी प्रकार सभी ग्रह पर्यावरण को किसी किसी रूप में  प्रभावित करते हैं | अतः पर्यावरण और ज्योतिष का आपस में  गहरा सम्बन्ध है |

संदर्भ सूची / References

1.      सूर्यसिद्धांत- स्पष्टाधिकार-  श्लोक १२

2.      बृहत्संहिता / नक्षत्रकूर्म निरूपणम्/अध्याय -14   श्लोकौ - 1-33

3.      नारद संहिता / अध्याय-36 शलोकौ- 1,2,3    

4.      नारद संहिता /  अध्याय -36 श्लोकौ-4,5,6

5.      समाससंहिता - ज्योतिष मीमांसा/अंकः चतुर्थः    पृ.सं 27 

6.      ऋग्वेद ७/३५/३ तथा यजुर्वेद ३६/१३

7.      ऋग्वेद १०/३५/५

8.      यजुर्वेद ३६/१०

9.      ऋग्वेद ७/३५/७

10.    ऋग्वेद ७/३५/८

11.    ऋग्वेद ७/३५/४

12.    अथर्ववेद ६/१०/६

13.    ज्योतिष विश्वकोश मोबाइल ऐप (Mobile Aap ) निर्माता डॉ. भूपेंद्र पांडेय

14.    ज्योतिष मीमांसा - चतुर्थ अंक - पृष्ठ सं. ७८ से ८४ |


3 Comments

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