नक्षत्र (तारा)और उनकी उपयोगिता

Author
भारती खरे
ज्‍योतिर्विद्

तारा विचार

9 ताराएं

शुभ अशुभ तारायें

वैदिक ज्योतिष के 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटा गया है ।अतः तारा नौ प्रकार की कही गई हैं। 

         27 ÷ 9= 3

इस प्रकार 3-3 नक्षत्रों के 9 वर्ग बनते हैं। इन 9 तारा के नाम इस प्रकार हैं । 1. जन्म  2.सम्पत् 3.विपत् 4.क्षेम 5. प्रत्यरि 6. साधक 7.वध 8. मित्र  9.अति मित्र। 

        प्रत्येक जन्म कुंडली में चंद्रमा 27 नक्षत्रों में से किसी ना किसी नक्षत्र में उपस्थित होते हैं जिसे जातक का जन्म नक्षत्र कहा जाता है। उसके बाद क्रमशः नक्षत्रों को इस प्रकार देखा जा सकता है-

        नाम         न.सं   न.सं       न.सं                            विषय 

1.   जन्म           1         10         19          जिस नक्षत्र में जन्म हो  ,व्यक्तिगत मुहूर्त चार्ट

2.   संपत           2         11         20            धन, यश ,सफलता

3.   विपत           3         13         21           रोग, शोक, चिंता ,भय ,दुर्घटनाएं, दुर्भाग्य

4.   क्षेम           4         14         22          मित्र, बंधु ,सहयोग, मान, शुभ घटनाएं

5.   प्रत्यरि          5         15         23          विघ्न, विलंब, वैर,असफलता

6.   साधक           6         16         24          मित्र, सहयोग, सफलता, श्रेष्ठता, उपलब्धियां

7.   वध           7         17         25          गंभीर बीमारी, अपयश , असफलता, मानसिक संताप, मृत्यु

8.   मित्र            8         18         26          मित्रों से सहयोग, धन,मान, यश, चतुर्दिक उन्नति

9.   अति मित्र        9         19         27          निष्ठावान मित्रों से सहयोग, समर्थन, खुशी, आरामदायक जीवन

       जैसा जिस तारा का नाम है वैसा ही उसका फल भी है।

         *तारा का प्रयोग * 

       तारा का विचार मुख्यतः मेलापक में किया जाता है।

         तारा के शुभाशुभत्व को जानने के लिए वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के जन्म नक्षत्र तक गिनना चाहिए ।प्राप्त नक्षत्रों की संख्या को 9 से भाग दें, जो शेष बचे उस शेष से तारा संख्या का ज्ञान प्राप्त होता है। यदि एक शेष रहे तो जन्म, दो शेष रहे तो संपत ,3 शेष रहे तो विपत ....आदि तारा   क्रमशः होती हैं। 

      इसी प्रकार कन्या के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गिन कर 9 से भाग देने पर शेष हो वह क्रमशः 1 से 9 तक वधू की तारा होती है तारा मिलान के 3 अंक दिए जाते हैं।

       वर +कन्या दोनों शुभ तारा = 3 अंक

 वर+ कन्या दोनों अशुभ तारा = 0 अंक

वर+ कन्या एक शुभ, एक अशुभ =1.5 अंक

       तारा गुण का संबंध वर वधु के भाग्य से होता है इसलिए मेलापक के समय तारा गुण ज्ञात करना परम आवश्यक होता है।

 उदाहरण:- 

       कुंडली में लड़के का नक्षत्र हस्त तथा लड़की का नक्षत्र मृगशिरा है ।लड़के के जन्म नक्षत्र हस्त से लड़की के जन्म नक्षत्र मृगशिरा तक गिनने पर जो संख्या प्राप्त हुई -

           20÷9 =शेष 2 जो शुभ तारा है।

        इसी प्रकार लड़की के नक्षत्र मृगशिरा से लड़के के नक्षत्र हस्त तक गिरने पर संख्या प्राप्त हुई-

           9 ÷9=0 अर्थात् 9 यह भी शुभ  तारा है।       

             दोनों तारा शुभ होने से अधिकतम अंक प्राप्त हुए।

 *विषम तारा- 1,3,5,7 अशुभ

  *सम तारा-2,4,6,8 शुभ

  *अपवाद  - 9 वीं तारा विषम होकर भी शुभ होती है।

       जब नैसर्गिक क्रूर ग्रह जैसे शनि, राहु, केतु, मंगल विषम तारे से गोचर करते हैं तो खतरा बढ़ जाता है और सम तारे से गोचर करते हैं तो तारों की शुभता में कमी लाते हैं गुरु और शुक्र का गोचर सम से शुभता लाता है और विषम अशुभता को कम करता है।

         मुहूर्त निर्धारण में प्रयोग

      शुभ मुहूर्त का निर्धारण बिना चंद्र और तारा बल की शुद्धि के नहीं हो सकता किसी भी कार्य में यदि चंद्रमा और तारा यह दोनों अनुकूल हैं तो उस कार्य में अवश्य सिद्धि होती है।

        क्योंकि मंगल आदि ग्रहों से सूर्य बलवान, सूर्य से चंद्रमा बली और चंद्रमा से भी तारा बली होता है। इसलिए शुभाशुभ फल देने में तारा की ही प्रधानता मानी गई है। अन्य ग्रह कार्य विशेष में ही फल देते हैं।किंतु तारा (नक्षत्र) और तारापति (चंद्रमा) समस्त शुभाशुभ कार्यों में अपना फल देते हैं।

         चंद्रमा यदि निर्बल हो तो तारा के बल से बली हो जाता है तथा पूर्ण बली चंद्रमा भी तारा की प्रतिकूलता में अक्षम हो जाता है।

       गोचर में प्रयोग 

       हमारी राशि के अनुसार वर्तमान में ग्रहों की स्थिति को ही गोचर कहते हैं हमारी राशि से 0,3,5,7 नक्षत्रों में गोचर करने वाले ग्रह हमारे अनुकूल नहीं होंगे।

 उदाहरण:- 

        यदि जातक की तारा पुष्य हो तो सभी ग्रहों की स्थिति कि वे किस नक्षत्र में है वह  पुष्प से निकालेंगे । जैसे यदि मंगल मृगशिरा में है तो गणना करने पर वह पुष्य से 25 वाँ  नक्षत्र आएगा ।

            अतः तारा 25 ÷9= शेष 7 आएगा।

       इसी प्रकार सभी ग्रहों की गणना कर यह ज्ञात कर लेंगे कि उनकी तारा कौन सी आ रही है जिनकी तारा शुभ है वे गोचर में 1,3,5,7 नक्षत्रों से जब गोचर करेंगे अशुभ फल देंगे या परस्पर वेध होगा तब भी कष्ट होगा। यहाँ यह बात भी  ध्यान रखने योग्य है कि ग्रह भाव के अनुसार अनुकूल है या प्रतिकूल।


3 Comments

Amanda Martines 5 days ago

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Marie Johnson 5 days ago

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