प्रेक्षागृह (Auditorium) का वास्तुशास्त्रीय स्वरूप

Author
डॉ.गणेश मिश्र
आचार्य, केन्‍द्रीय संस्‍कृत विश्‍वविद्यद्यालय, सदाशिवपरिसर पुरी

रंग-मंच वह स्थान है जहाँ नृत्य, नाटक, आदि हों दर्शकों के बैठने के स्थान को प्रेक्षागार और रंगमंच (Stage) सहित समूचे भवन को प्रेक्षागृह, रंगशाला या नाट्यशाला (Theater) कहते हैं। पश्चिमी देशों में इसे थिएटर या ऑपेरा नाम दिया जाता है। नाट्यप्रयोग का मुख्य तत्व नाट्य मण्डप ही है।

इहादिर्नाट्ययोगस्य नाट्यमण्डप एवही।
तस्मात्तस्यैव तावत्त्वं लक्षणं वक्तुमर्हसि।।*1

इसलिए जहाँ पर जिस प्रकार से नाट्य मण्डप का निर्माण करना चाहिए और उसके वास्तु अर्थात नाट्यगृह के भूमि का आकार, परिमाण आदि विश्वकर्मा ने प्रेक्षागृह को देखकर शास्त्र के अनुसार जिन तीन प्रकार के सन्निवेश (परिमाण आदि) की परिकल्पना की है उसके अनुसार प्रेक्षागृह का निमाण करना चाहिए।

इह प्रेक्षागृहं दृष्ट्वा धीमता विश्वकर्मणा।
त्रिविधः सन्निवेशश्च शास्त्रतः परिकल्पितः।।*2

पृथ्वी ही वस्तु है। अतः इस पर निर्मित कृति वास्तु है।
भूरेव मुख्य वस्तु स्यात़् तत्र जातानि यानि हि।।।*3,

प्रेक्षागृह हेतु भूखण्ड चयन करते समय मिट्टी का वर्ण, गंध, रस, आकार, दिशा, शब्द और स्पर्श की परीक्षा अवश्य कर लेनी चाहिए। प्रशस्त औषधि वाली, दु्रम (याज्ञिक वृक्ष त्रपलाश आदि)वाली, लताओं से युत, मधुर मिट्टी वाली, सुगन्धि वाली, निर्मल, समान और छिद्र रहित भूमि मार्ग में गमन से उत्पन्न श्रम को हटाने की इच्छा से वहाँ पर थोड़ी देर के लिए बैठे मनुष्य को भी लक्ष्मी प्रदान करती है। फिर ऐसी भूमि जिनके घर के पास में सदा रहती हरे उनके सम्बन्ध में तो कहना ही क्या है ? अर्थात् उनको तो अवश्य ही लक्ष्मी की प्राप्ति कराती है।

शस्तौषधिद्रुमलता मधुरा सुगन्धा
स्निग्धा समा न सुषिरा च मही नराणाम्।
अप्यध्वनि श्रमविनोदमुपागतानां
धत्ते श्रियं किमुत शाश्वतन्दिरेषु।।*4,

जिस भूमि पर वृक्ष उगे हों, लहलहाती फसल उगी हुई हो वह भूमि जीवित कहलाती है इसके अतिरिक्त मृत भूमि होती है। जीवित भूमि में ही प्रेक्षागृह का निर्माण करना चाहिए।

यत्र वृक्षाः प्ररोहन्ति सस्यं हर्षात्प्रवर्द्धते।
सा भूमिजीविता वाच्या मृता चातोऽन्यथा भवेत्।।*5,

जो भूमि समतल, स्थिर, कठोर (ठोस) काली, अथवा गौर वर्ण की हो उसी भूमि पर प्रेक्षागृह निर्माताओं को नाट्यमण्डप बनाना चाहिए।
समा स्थिरा तु कठिना कृष्णा गौरी च या भवेत।
भूमिस्तत्रैव कर्तव्यः कर्तृभिर्नाट्य मण्डपः।।*6,

सबसे पहले भूमि को शोधन करके अर्थात् ऊपर की गन्दी मिट्टी कंकड़ आदि को दूर कर दे, उसके बाद कील, खपड़ एवं घास-फूसों को निकालना चाहिए।

प्रथमं शोधनं कृत्वा लांगलेन समुत्कृषेत।
अस्थि कीलककपालानि तृणगुल्मांश्च शोधयेत।।*7,

इस प्रकार बाहर एवं भीतर से भूमि को शुद्ध करके उसके बाद परिणाम का निर्देश करना चाहिए। तीनों उत्तरा (उत्तरा, फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद) मृगशिरा, विशाखा, रेवती, हस्त, पुष्य और अनुराधा नक्षत्र प्रेक्षागृह के निर्माण में शुभ कहे गये हैं।

शोधयित्वा वसुमतीं प्रमाणं निर्दिशेत्ततः।
त्रीण्युत्तराणि सौम्यं च विशाखामपि च रेवती।।
हस्ततिष्यानुराधाश्च प्रशस्ता नाट्य कर्मणि।।*8,

इस प्रकार से प्रयोजक (नाट्यकत्र्ता) को सबसे पहले भूमि खण्ड की परीक्षा करनी चाहिए। तदनन्तर वास्तुशास्त्र के प्रमाण के अनुसार शुभ की इच्छा से वास्तु का निर्माण कार्य प्रारम्भ करें।

भूमेर्विभागं पूर्वं तु परीक्षेत प्रयोजकः।
ततो वास्तु प्रमाणेन प्रारभेत शुभेच्छया।।*9,

विश्वकर्मा वास्तुविद्या का विशेषज्ञ आचार्य था उन्होंने देवताओं के लिए अनेक प्रकार के भवनों एवं दुर्गों का निर्माण किया था। वह वास्तुकला में निपुण शिल्पी था। प्रथम नाटक शुभारम्भ में जो अकल्पित बाधा उपस्थित हो गयी थी, वह भविष्य में न होने पावे, इसके लिए ब्रह्मा जी ने महान स्थापित विश्वकर्मा को आदेश दिया कि वे सर्वलक्षण सम्पन्न शुभदायी वृहद् नाट्यशाला का निर्माण करें।

ततोऽचिरेण कालेन विश्वकर्मा शुभं महत्।
सर्व लक्षण सम्पन्नं कृत्वा नाट्यगृहं तु सः।।*10,

विश्वकर्मा ने नाट्यशास्त्र के अनुसार नाट्य मण्डप के तीन प्रकार का सन्निवेश (आकार) कल्पित किया है - (1) विकृष्ट (2) चतुरस्त्र (3) त्र्यश्च। इनमें विकृष्ट नाट्य पण्डप आयताकार लम्बा होता है। विकृष्ट शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है - ‘विभागेन कृष्टः दीर्घः इति विकृष्टः’ अर्थात् चैड़ाई की अपेक्षा लम्बाई अधिक हो, चारों कोने बराबर न हों, उसे विकृष्ट नाट्य मण्डप कहते हैं। चतुरस्त्र नाट्य मण्डप चारों दिशाओं में बराबर चैकोण होता है। (चतसृषु दिक्षु साभ्येन कृष्ट इति चतुस्त्रः) जिसकी चारों भुजाएँ समान हो, ऐसा वर्गाकार - क्षेत्र वाला मण्डप चतुरस

संदर्भ सूची / References

1.    नाट्यशास्त्र द्वितीय अध्याय श्लोक 3

2.    नाट्यशास्त्र द्वितीय अध्याय श्लोक 7

3.    मयमतम (2/2)

4.    वृहत्संहिता, वास्तु विद्याध्याय श्लोक 86

5.    वृहद्वास्तुमाला

6.    नाट्यशास्त्र द्वितीय अध्याय श्लोक 30

7.    नाट्यशास्त्र द्वितीय अध्याय श्लोक 31

8.    नाट्यशास्त्र द्वितीय अध्याय श्लोक 32

9.    नाट्यशास्त्र द्वितीय अध्याय श्लोक 29

10. नाट्यशास्त्र 1-80

11. नाट्यशास्त्र 2-8

12. नाट्यशास्त्र 2-9

13. नाट्यशास्त्र द्वितीय अध्याय श्लोक 12

14. नाट्यशास्त्र द्वितीय अध्याय श्लोक 50

15. नाट्यशास्त्र द्वितीय अध्याय श्लोक 71


3 Comments

Amanda Martines 5 days ago

Exercitation photo booth stumptown tote bag Banksy, elit small batch freegan sed. Craft beer elit seitan exercitation, photo booth et 8-bit kale chips proident chillwave deep v laborum. Aliquip veniam delectus, Marfa eiusmod Pinterest in do umami readymade swag. Selfies iPhone Kickstarter, drinking vinegar jean.

Reply

Baltej Singh 5 days ago

Drinking vinegar stumptown yr pop-up artisan sunt. Deep v cliche lomo biodiesel Neutra selfies. Shorts fixie consequat flexitarian four loko tempor duis single-origin coffee. Banksy, elit small.

Reply

Marie Johnson 5 days ago

Kickstarter seitan retro. Drinking vinegar stumptown yr pop-up artisan sunt. Deep v cliche lomo biodiesel Neutra selfies. Shorts fixie consequat flexitarian four loko tempor duis single-origin coffee. Banksy, elit small.

Reply

Leave a Reply