ज्योतिष में धनयोग वि‍चार एक अध्ययन

Author
डॉ.भूपेन्‍द्र कुमार पाण्‍डेय
आ.ज्‍योतिषविभाग, के.सं.वि.वि.भोपाल परिसर, भोपाल एवं संस्‍थापक ज्‍योतिषविश्‍वकोश

❖धन, धान्य, कुटुम्ब/परिवार, मृत्यु, शत्रु, धातु, अर्थात् संचित धन का द्वितीय भाव से विचार करना चाहिए।। #बृ.पा.हो.12-3# वैद्यनाथ के अनुसार- धन, नेत्र, मुख, विद्या, वाणी, कुटुम्ब, भोजन इनका विचार द्वितीय भाव से किया जाता है। द्वितीय स्थान से विशेषकर संचित धन का विचार किया जाता है । ।। #जाoपाo11-49# ❖वाहन, बन्धु बान्धव, माता, सुख, गड़ा धन, खेत, घर, अचल सम्पत्ति आदि का विचार चतुर्थ भाव से करना चाहिए ।। #बृoपाoहोo12-5# ❖सभी वस्तुओं की प्राप्ति, भौतिक लाभ, जैसे स्त्री पुत्र धन आदि की प्राप्ति, आय, वृद्धि, सम्पत्ति आदि का विचार एकादश भाव से विचार करना चाहिए।। #बृoपाoहोo12-12#

धन व‍िचार के मुख्‍य भाव- ❶ 11भाव ❷ दूसरा भाव ❸ चौथा भाव

☂️(i) द्वितीयेश द्वितीय में हो, एकादशेश लाभ में हो तथा लग्नेश लग्न में हो। (ii) धनेश और लाभेश अपनी उच्च राशि या स्वराशि या मित्रराशि में स्थित होते हुए दोनों लाभ में हों । (iii) लाभेश और धनेश मित्र हों और एक साथ लग्न में बैठे तो भी जातक बहुत धनी होता है। (iv लग्न में लग्नेश, लाभेश और धनेश तीनों बैठे तो भी ऊपर (3) का जो फल बताया उससे भी अधिक फल होगा है, क्योंकि लग्नेश, धनेश, लाभेश तीनों की युति हो जायेगी और लग्नेश स्वगृही अर्थात् बलवान् होगा ।। #जाoपाo11-50# ☂️(i]यदि चन्द्रमा द्वितीय में हो और शुक्र से दृष्ट हो तो धनाढ्य होता है। [ii] यदि बुध द्वितीय में हो और शुभ ग्रह दृष्ट हो तो सदा धनवान् रहता है। [iii]यह स्मरण रखना चाहिये कि धन स्थान स्थित और उसका देखने वाला ग्रह जितना बलवान् होगा उतना ही अधिक शुभ फल होगा।। #जाoपाo11-57# ☂️[i] धनेश लाभ में हो और लाभेश धन (द्वितीय) में हो अथवा [ii]धनेश और लाभेश दोनों केन्द्र में हों तो धनवान् और विख्‍यात होता है। यहाँ केन्द्र से तात्पर्य लग्न से केन्द्र का है।।#जाoपाo11-59# ☂️(i) यदि लग्नेश द्वितीय में हो, द्वितीयेश लाभ में हो तो अधिक मात्रा में धन प्राप्ति का योग बनता है। (ii) लाभेश लग्‍न में हो तो भी धनकारक योग बनता है।। #जा.पा.11-62#

धन के मुख्‍य कारक- ☂️(i) जो धन स्थान में बैठा हो (ii) जो धन स्थान को देखता हो (iii) जो धन स्थान का मालिक हो । ये तीनों ग्रह अपनी महादशा में और अन्तर्दशा में धन लाभ कराते हैं।। #जाoपाo11-51# ☂️धनेश यदि द्वितीय भाव में हो, अथवा केन्द्र त्रिकोण में हो तो धनवृद्धिकारक होता है । ☂️यदि धनेश 6.8.12 भावों में हो तो धन के लिये अशुभ होता है।। #बृoपाoहोo14-1# ☂️धन भाव में शुभ ग्रह धन देने वाले तथा धन भाव में पाप ग्रह धननाशक होते हैं । ☂️यदि धनस्थ शुभ ग्रह या धनेश, शुभ युक्त या दृष्ट हो तो धन लाभ होता रहता है।। #बृoपाoहोo14-2#


3 Comments

Amanda Martines 5 days ago

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Marie Johnson 5 days ago

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