ज्योतिषशास्त्र में महिलाओं की भूमिका

Author
डॉ.गणेश मिश्र
आचार्य, केन्‍द्रीय संस्‍कृत विश्‍वविद्यद्यालय, सदाशिवपरिसर पुरी

आचार्य वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थों में महिलाओं की खुलकर मुक्त हृदय से प्रशंसा की है। वराहमिहिर ने महिलाओं के विषय में अलग चिन्तन कर ज्योतिषशास्त्र को नये आयाम प्रस्तुत किये। फलस्वरूप उन्होंने बृहज्जातक में ' स्त्रीजातकाध्याय' एवं बृहत्संहिता में ' स्त्रीप्रशंसाध्याय' नामक एक अलग अध्याय की रचना कर डाली। जहाँ आज भारतीय नारी समाज में अपनी जगह बनाने में लगी हैं और फिर से अपने को स्थापित करने में लगी हैं।वही प्राचीन काल में भारतीय नारी सभी विषयों में रूचि लेती थी । सिर्फ रूचि ही नहीं वो उन विषयों की सभाओ में तर्क-वितर्क करने के लिए भाग लेती थी। 
गार्गी- बृहदारण्यक उपनिषद् में याज्ञवल्य तथा गार्गी का शास्त्रार्थ वर्णित है। आचार्य वराहमिहिर द्वारा रचित बृहज्जातक ग्रन्थ के टीकाकार भट्टोत्पल ने बादरायण, याज्ञवल्य और माण्डव्य के साथ गार्गी के जातक सम्बन्धी वचनों का उल्लेख किया है। उनमें गार्गी के वचन तो अनेक है और उन वचनों से स्पष्ट होता है, कि वे वचन वराह मिहिर के पूर्व के हैं। वराहमिहिर से पूर्व पाँच आर्ष ग्रन्थ भारतीय ज्योतिष में विद्यमान थे। 
लीलावती- महान गणितज्ञ लीलावती का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है। आज की पीढ़ी उन्हें बहुत अधिक नहीं जा‍नती। शायद ही कोई जानता हो कि आज यूरोप सहित विश्व के सैंकड़ो देश जिस गणित की महान पुस्तक से गणित को पढ़ा रहे हैं, उसकी रचयिता भारत की एक महान गणितज्ञ महर्षि भास्कराचार्य की पुत्री "सुश्री लीलावती" है। आइए जानते हैं महान गणितज्ञ लीलावती के बारे में जिनके नाम से गणित को पहचाना जाता था।
 लीलावती गणित विद्या की आचार्या थीं, जिस समय विदेशी क-ख-ग भी नहीं जानते थे, उस समय उसने गणित के ऐसे-ऐसे सिद्धांत सोच डाले, जिन पर आधुनिक गणितज्ञों की भी बुद्धि चकरा जाती है। दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में भास्कराचार्य नामक गणित और ज्योतिष विद्या के एक बहुत बड़े पण्डित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था। वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्यो‍तिष की गणना से जान लिया कि ‘वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।’ उन्होंने बहुत कुछ सोचने के बाद ऐसा लग्न खोज निकाला, जिसमें विवाह होने पर कन्या विधवा न हो। विवाह की तिथि निश्चित हो गई। जलघड़ी से ही समय देखने का काम लिया जाता था। एक बड़े कटोरे में छोटा-सा छेद कर पानी के घड़े में छोड़ दिया जाता था। सूराख के पानी से जब कटोरा भर जाता और पानी में डूब जाता था, तब एक घड़ी होती थी। विधाता का ही सोचा हुआ होता है। लीलावती सोलह श्रृंगार किए सजकर बैठी थी, सब लोग उस शुभ लग्न की प्रतीक्षा कर रहे थे कि एक मोती लीलावती के आभूषण से टूटकर कटोरे में गिर पड़ा और सूराख बंद हो गया; शुभ लग्न बीत गया और किसी को पता तक न चला। विवाह दूसरे लग्न पर ही करना पड़ा। लीलावती विधवा हो गई, पिता और पुत्री के धैर्य का बांध टूट गया!
लीलावती अपने पिता के घर में ही रहने लगी पुत्री का वैधव्य-दु:ख दूर करने के लिए भास्कराचार्य ने उसे गणित पढ़ाना आरंभ किया। उसने भी गणित के अध्ययन में ही शेष जीवन की उपयोगिता समझी। थोड़े ही दिनों में वह उक्त विषय में पूर्ण पण्डिता हो गई। पाटीगणित, बीजगणित और ज्योतिष विषय का एक ग्रंथ ‘सिद्धांतशिरोमणि’ भास्कराचार्य ने बनाया है। इसमें गणित का अधिकांश भाग लीलावती की रचना है। पाटीगणित के अंश का नाम ही भास्कराचार्य ने अपनी कन्या को अमर कर देने के लिए ‘लीलावती’ रखा है।

भास्कराचार्य ने अपनी बेटी लीलावती को गणित सिखाने के लिए गणित के ऐसे सूत्र निकाले थे जो काव्य में होते थे। वे सूत्र कंठस्थ करना होते थे। उसके बाद उन सूत्रों का उपयोग करके गणित के प्रश्न हल करवाए जाते थे। कंठस्थ करने के पहले भास्कराचार्य लीलावती को सरल भाषा में, धीरे-धीरे समझा देते थे। वे बच्ची को प्यार से संबोधित करते चलते थे, "हिरन जैसे नयनों वाली प्यारी बिटिया लीलावती, ये जो सूत्र हैं...।" बेटी को पढ़ाने की इसी शैली का उपयोग करके भास्कराचार्य ने गणित का एक महान ग्रंथ लिखा, उस ग्रंथ का नाम ही उन्होंने "लीलावती" रख दिया।

 
आज गणित जैसे विषय को लड़कियाँ क्या लड़के भी कम पसंद करते है वही 10 वीं शताब्दी में लीलावती नाम की महिला जानी-मानी गणितज्ञ थी।  मनुष्य के मरने पर उसकी कीर्ति ही रह जाती है। लीलावती ने गणित के आश्चर्यजनक और नवीन, नवीनतर तथा नवीनतम सिद्धांत स्थिर कर विश्वमात्र का उपकार किया है। वैधव्य ने उस साध्वी नारी की कीर्ति में चार चाँद लगा दिये।आज गणितज्ञो को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में लीलावती पुरूस्कार से सम्मानित किया जाता है।


खना- गणित में लीलावती का जिस सम्मान के साथ नाम लिया जाता है उसी तरह ज्यो‍‍तिष में सखी खना का नाम बहुत प्रसिद्ध है। खना लंका द्वीप के एक ज्योतिषी की कन्या थीं। यह 4वीं-5वीं सदी की बात है। उज्जयिनी में महाराज विक्रमादित्य का राज्य था। उनके दरबार में बड़े-बड़े कलाकार, कवि, पण्डित, ज्योतिषी आदि विद्यमान थे। वराह ज्योतिषियों के अगुआ थे। उनकी गणना नवरत्नों में होती थी।  खना को ऐसी-ऐसी गणनाएं आती थीं जिनका वराह मिहिर को थोड़ी मात्रा में भी ज्ञान नहीं था। किसान और देहाती जन खना के बताए सिद्धांतों और गणनाओं से पानी बरसने, सूखा पड़ने आदि का भविष्य बतलाते हैं।

भडली-
श्रावण पहिले पाँच दिन,मेघ न भाँडे आव।
पिया पधारौ मालवा, मैं जैहौं मौसाल।।
पूरब दिशि में काचवी, जो आथमते सूर।
भडली वायक इमि भड़े, दूध जमाऊँ कूर।।
सनि आदित या मँगलहिं, जौं पौढ़े जदुराय।
चाक चढ़ावै मेदिनी, पृथ्वी परलै धाय।।
स्त्रावन सुक्ला सप्तमी उदय न दीखै भानु।
तब लगि देव बरसहीं, जब लगि देव उठान।।
अंडा लै चींटी चढ़ै, चिड़ो नहावै धूर।
ऊँचे चील उड़ान लै, है बरसा भरभूर।।

ये कृषकों के लिये जीवन सूत्र हैं। काठियावाड़ से लेकर उत्तर भारत तक इनका प्रचार है। इस प्रकार के सूत्ररूप दोहे ऋतु के सम्बन्ध में, उपज के सम्बन्ध में, पशुओं के सम्बन्ध में ग्रामों में अत्यन्त प्रचलित हैं। ये प्रायः ज्यों- के- त्यों सत्य सिद्ध होते हैं। पता नही, कितने दीर्घ कालीन अनुभव एवं गहन ज्योतिष का तत्व इनमें निहित है। 

मारवाड़ के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी हुदाद की कन्या भडली ने इस प्रकार के दोंहों का निर्माण किया है। ये दोहे ही बताते हैं कि उनका ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान कितना विशाल था। प्रायः भडली के दोहे अत्यन्त सरल ग्रामीण भाषा में हैं। सूत्र की भाँति उनमें पूरी बात उनमें पूरी बात कह दी गयी है। ग्राम्य कृषकों के लिए तो वे पुराण हैं। 
पिता से भडली ने  ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त किया था। साथ ही बड़ी सावधानी से उन्होंने दीर्घकालतक प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण किया था। उनके ज्ञान एवं अनुभव के द्वारा आज भी असंख्यों कृषकों का उपकार हो रहा है।

 
गौरी- शंकरबालकृष्ण दीक्षित ने ज्योतिष शास्त्र के इतिहास में यह लिखा है,कि सम्प्रति दो दैवी का ग्रन्थ उपलब्ध है, जो क्रमशः गौरी- जातक तथा काल -जातक के नाम से प्रसिद्ध है। सम्भवतः गौरी जातक का लेखक गौरी नामक कोई महिला हो सकती हैं। जिसे पार्वती नाम से कहा गया है। काल जातक में योगिनीदशा का उल्लेख होने से यह ग्रन्थ भी किसी योगिनी द्वारा रचित हो सकता है।

 श्रीमती कोमलताम्मल-  ये प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम् की माता थीं। इनकी ज्योतिष शास्त्र में भी गहरी रुचि थी। फलित सम्बन्धी अनेक विधाओं का इन्हें पर्याप्त ज्ञान था। रामानुज की मृत्यु के पूर्व,जब वे बीमार चल रहे थे, इन्होने उनके विषय में पहले ही गणना कर रखी थी। जब उन दिनों केरल के एक प्रसिद्ध ज्योतिषी को रामानुजम् की जन्म-पत्री दिखाई गई, तो उन्होंने जो फलादेश किया, उसे ये पहले ही लिखकर ले गयी थीं। इनके इस ज्योतिष-ज्ञान की छाप रामानुज पर पड़ा था ।
इन महिला ज्योतिष के अतिरिक्त सम्भव है अन्य महिलाएँ भी भारतीय ज्योतिष के क्षेत्र में कार्यरत हो, किन्तु सूचना के अभाव में उनका विशेष परिचय नहीं दिया जा सकता है। 

शकुन्तला देवी- शकुन्तला देवी (4 नवम्बर 1929 - 21 अप्रैल 2013) जिन्हें आम तौर पर "मानव कम्प्यूटर" के रूप में जाना जाता है, बचपन से ही अद्भुत प्रतिभा की धनी एवं मानसिक परिकलित्र (गणितज्ञ) थीं। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनका नाम 1982 में ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भी शामिल किया गया।

शकुंतला जी ने 6 वर्ष की उम्र में मैसूर विश्वविद्यालय में एक बड़े कार्यक्रम में अपनी गणना क्षमता का प्रदर्शन किया। वर्ष 1977 में शकुंतला ने 201 अंकों की संख्या का 23वां वर्गमूल बिना कागज़ कलम के निकाल दिया। उन्होने 13 अंकों वाली 2 संख्याओं का गुणनफल 26 सेकंड बता दिया था।आर्थिक तंगी के चलते उन्हें दस साला होने पर ही संत थेरेसा कोंवेंट चमाराजपेट में कक्षा 1 में भर्ती किया जा सका। माँ बाप के पास स्कूल की फीस (शुल्क मात्र दो रुपया प्रति माह) देने के लिए भी पैसे नहीं थे लिहाजा तीन माह के बाद ही उन्हें स्कूल से चलता कर दिया गया। तकरीबन गुट्टाहल्ली का झोंपड पट्टी नुमा इलाका ही था गाविपुरम जहां आपका लालन पालन हुआ।
1977 में, दक्षिणी विश्वविद्यालय, डल्लास, USA ने शकुंतला को आमंत्रित किया. जहा उन्हें 201 (Digit Number) का 23 व रुट बताने के लिये कहा गया. जो उन्होंने सिर्फ 50 सेकंड में ही बता दिया. उनका उत्तर UNIVAC 1101 कंप्यूटर में देखने के लिये US ब्यूरो ऑफ़ स्टैण्डर्ड को विशेष प्रोग्राम तैयार करना पड़ा था।
उन्होंने किताबो के साथ ही ज्योतिषशास्त्र के बारे में भी लिखा, वैज्ञानिक अंको, पहेलियो के बारे में भी लिखा। इस क्षेत्र में उनके महान कार्यो में आपके लिये ज्योतिषशास्त्र(2005) इत्यादि शामिल है।


 हपाशा- सिकंदरिया की हपाशा पहली महिला थीं, जिन्होंने गणित विषय के विकास मे अपना योगदान देकर उसे और भी समृद्ध व संपन्नता प्रदान की। वे एक ग्रीक नियोप्लाटोनिस्ट दार्शनिक भी थीं, जो मिस्त्र के रोमन समुदाय की थीं। वे सिकंदरिया स्थित प्लाटोनिस्ट विद्यालय की प्रमुख भी थीं। यहाँ पर विद्यार्थियों को दर्शन शास्त्र और खगोल विद्या का ज्ञान दिया जाता था। 

हपाशा का जीवन एक ऐसी महिला का जीवन था, जो ज्ञान को अधिक-से -अधिक अपने भीतर समाहित करने की जिज्ञासा से पूरा करने के लिए सदैव तत्पर रहती थीं और अपने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करती थीं।  हपाशा के जीवन के विभिन्न पहलुओं को लेकर इतिहास कारों के बीच शंका की स्थिति सदैव बनी रही है। उनकी जन्मतिथि एक ऐसा विषय है, जिसे लेकर सदा ही विवाद बना रहा है।  कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनका जन्म 370 ईसा पश्चात् मे हुआ; जबकि कुछ इतिहासकारों का तर्क है कि अपनी मृत्यु के समय वे एक बुजुर्ग महिला थीं, जिनकी उम्र लगभग 60 वर्ष की थी। इसलिए उनकी जन्मतिथि लगभग 355 ईसा पश्चात की होगी। हपाशा सिकंदरियों के थ्योन कू बेटी थीं, जो मिस्त्र मे स्थित सिकंदरिया के संग्रहालय में गणित विषय के अध्यापक थे। हपाशा के पिता सिकंदरिया के थ्योन ने अपनी पुत्री के पालन- पोषण विचारों के वातावरण के बीच में किया; अर्थात हपाशा का पूरा बचपन विभिन्न विचारों के बीच में ही गुजरा । इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि थ्योन की अपनी पुत्री को लेकर यह कोशिश रही कि वे उसमें एक सम्पूर्ण मानव का विकास कर सकें। थ्योन स्वयं एक जाने- माने विद्वान और सिकंदरिया विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर थे। पिता और पुत्री में एक बहुत ही मजबूत बंधन था, हपाशा के पिता थ्योन ने अपनी पुत्री को अपना ज्ञान तो दिया ही, इसके साथ ही किसी अज्ञात के हल को तलाश करने की अपनी उत्सुकता को भी अपनी बेटी के साथ बाँटा। हपाशा जैसी बड़ी होती गई, उनमें गणित,विज्ञान-विशेष तौर पर खगोल विद्या और ज्योतिष विद्या -को लेकर उत्साह भी बढ़ता गया। वैसे हपाशा के गणित विषय से जुड़े किसी भी प्रकार के शोध को मौलिक रूप से करने के संकेत प्राप्त नहीं होते ; लेकिन इतना अवश्य है कि उन्होंने अपने पिता के द्वारा किए गए कार्यों में पूरा-पूरा सहयोग दिया। उनके पिता ने टाँल्मी के ' अमालजेस्ट' पर 11 भागों मे समीक्षा तैयार की। इसके साथ ही उन्होंने अपने पिता की यूक्लिड के द्वारा लिखी गई पुस्तक 'द एलीमेंट' के नवीनतम संस्करण को तैयार करने में भी भरपूर सहायता की। अपने पिता की सहायता करने के अतिरिक्त हपाशा ने ड्योफनटस की ' अर्थमैटिका', अपोलोनियस के ' कोनिक्स' व टाँल्मी के द्वारा खगोलशास्त्र पर किए गए कार्यों पर समीक्षा भी तैयार की। आज हमारे लिए दुःख की बात यह है कि हपाशा के द्वारा जो कार्य किया गया, वह सब लुप्त हो चुका है। इस संदर्भ में अब केवल कुछ शीर्षक और संदर्भ ही प्राप्त होते हैं। हपाशा के एक विद्यार्थी, जिनका नाम सिनेसिस था. के पत्रों के संदर्भ में यह पता चलता है कि एस्ट्रोबल के अविष्कार का श्रेय हपाशा को ही जाता है। एस्ट्रोबल एक ऐसा यंत्र था, जिसका प्रयोग खगोल विद्या का अध्ययन करने के लिए किया जाता था। अधिकतर इतिहास कारों का मानना है कि हपाशा ने बहुत ही कम उम्र में अपने पिता के सम्पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर उनसे भी आगे बढ़ने की दिशा में कदम रख दिया था। यद्यपि उस समय भी वे पूरी तरह से अपने पिता के बनाए नियमों का पालन करती थीं। वे उनके अनुशासन में ही रहती थीं। उनके पिता ने उनके लिए एक शारीरिक दिनचर्या का भी विकास किया था, जिससे कि उनका शरीर स्वस्थ रहे और उनका दिमाग उच्चतम स्तर पर क्रियाशील रहे। हपाशा को दी जाने वाली शिक्षा के दौरान ही उनके पिता ने उनको संसार के विभिन्न धर्मों के विषय में भी जानकारी दी और उनको यह भी सिखाया कि किस प्रकार अपने शब्दों के जादू से लोगों को प्रभावित किया जाता है। उन्होंने अपनी पुत्री को शिक्षण के मूलभूत तत्वों से भी अवगत कराया। इसके परिणाम-स्वरूप ही हपाशा एक प्रभावशाली वक्ता बनीं। उनके अपने शहर के अतिरिक्त अन्य शहरों से भी लोग हपाशा के पास पढ़ने और सीखने के लिए आते थे।  लगभग 400 ईसा पश्चात के समय हपाशा सिकंदरिया स्थित प्लाटोनिस्ट विद्यालय की प्रमुख बन गई थीं। वहाँ पर वे गणित और दर्शनशास्त्र पर व्याख्यान देतीं। यहाँ पर उनके शिक्षण का प्रमुख विषय नियोप्लाटोनिजम का दर्शनशास्त्र होता। हपाशा की शिक्षा उन प्लाटोनिस्ट पर आधारित होती,जो नियोप्लाटोनिज्म के संस्थापक और लगभग 300 ईसा पश्चात के समय नियोप्लाटोनिज्म का विकास करने वाले लंब्लीचस थे। हपाशा एक महिला की पोशाक के बजाय एक विद्वान अथवा अध्यापक की भाँति पोशाक धारण करती थीं। वे बिना किसी बंधन के आराम से सभी जगहों पर मुक्त रूप से घूमती-फिरती, अपने रथ को खुद ही चलातीं। उनका व्यवहार उस समय की अन्य महिलाओं के व्यवहार के बिलकुल विपरीत होता था। हपाशा का अपने शहर पर बहुत व्यापक स्तर पर राजनीतिक प्रभाव था। हपाशा को उनके द्वारा खगोल-शास्त्र में किए गए कार्यों की ज्योतिष, गणित विषय में किए गए कार्यों के लिए अधिक प्रसिद्धि मिली। उन्होंने प्रमुख तौर से अपोलोनियस के द्वारा सर्वप्रथम प्रस्तुत किए गए शंक्व खंड के विचार पर जो काम किया, उसने उन्हें विख्यात किया। इसके अतिरिक्त हपाशा ने अपोलोनियस के कार्य ' वर्क आन द कोनिक्स आँफ अपोलोनियस' का संपादन भी किया, जो एक शंकु को एक समतल के द्वारा विभिन्न भागों में बाँटता है। इस धारणा ने ही हाइपरबोला, पैराबोला और दीर्घवृत्त के विचारों को विकसित किया। इस महत्वपूर्ण पुस्तक पर हपाशा के द्वारा जो भी कार्य किया गया, उसने ही इस अवधारणा को समझाने मे बेहद सरल बना दिया।
मृत्यु - 415 ईसा पश्चात सिकंदरिया, मिस्त्र में 

महत्वपूर्ण योगदान- एस्ट्रोबल का अविष्कार, शंक्व खंड के विचार पर किये गये कार्य। पुस्तक ' वर्क आन द कोनिक्स आँफ ओपोलियस' ( संपादन)

मरियम मिर्जाखानी- अक्सर गणित को कठिन विषय समझा जाता है। विशेषकर लड़कियों को इस विषय से दूर रहने की सलाह दी जाती है। लेकिन इस धारणा को यदि आधुनिक युग में किसी ने गलत साबित किया है तो उसमें सबसे पहला नाम मरियम मिर्जाखानी का होगा। उन्होंने महज 37 वर्ष की आयु में गणित के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार के समतुल्य समझे जाने वाले प्रतिष्ठित फील्ड्स मेडल प्राप्त कर लिया था। लेकिन दुर्भाग्य स्तन कैंसर ने 15 जुलाई 2017 को 40 वर्ष की आयु में इस महान गणितज्ञ को हमसे छीन लिया। वह फील्ड्स मेडल से सम्मानित दुनिया की पहली महिला गणितज्ञ थीं। अंतर्राष्ट्रीय गणितज्ञ संघ यानी International Mathematical Union (IMU) द्वारा सन् 1936 से प्रत्येक चार साल में एक बार गणित के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए किसी व्यक्ति को फील्ड्स मेडल से सम्मानित किया जाता है।
 सन् 2008 से मरियल स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थीं।  जीवन की शुरुआत में, मरियम एक लेखक बनना चाहती थीं। लेकिन गणित के प्रति उनमें जुनून सा था जिसके कारण वह विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ बनीं। मरियम के शब्दों में कहें तो गणित उनके लिए एक पहेली को सुलझाने जैसा था।

मरियम का जन्म ईरान के तेहरान में हुआ था। आरंभिक शिक्षा ईरान से करने के बाद मरियल गणित के क्षेत्र में उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय  आयीं। वैसे 1990 के दशक में अंतर्राष्ट्रीय गणितीय ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीतने के कारण उन्हें ख्याति मिल चुकी थी।

यह सम्मान पाने वाली वह ईरान की पहली लड़की थीं। इसके अलावा नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के लिए चुनी गयी पहली ईरानी महिला थीं। इस संस्था के पूर्व सदस्यों में अल्बर्ट आइंस्टीन, थॉमस अल्वा एडीसन और अलेक्जेंडर ग्राहम बेल जैसे विख्यात वैज्ञानिक शामिल हैं।

सैद्धांतिक गणित में मरियम की विशेष दक्षता थी। उन्होंने बीजीय रेखागणित में, हाइपरबॉलिक ज्यामिति, एरगोडिक थ्योरी एंड सिम्प्लेक्टिक ज्यामिति आदि क्षेत्रों में विशेष योगदान दिया। उनके कार्यों ने इस भ्रांति को भी तोड़ा है कि गणित जैसे क्षेत्र में महिलाएं विशेष योगदान नहीं दे सकतीं। मरियम मिर्जाखानी का जीवन गणितप्रमियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया है।

इन महिला ज्योतिष के अतिरिक्त सम्भव है अन्य महिलाएँ भी भारतीय ज्योतिष के क्षेत्र में कार्यरत हो, किन्तु सूचना के अभाव में उनका विशेष परिचय नहीं दिया जा सकता है।  भारत के विकास में महिला साक्षरता का बहुत बड़ा योगदान है। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि पिछले कुछ दशकों से ज्‍यों-ज्‍यों महिला साक्षरता में वृद्धि होती आई है, भारत विकास के पक्ष पर अग्रसर हुआ है।
 सम्भव है कि २१वीं सदी में महिलाएँ ज्योतिष के क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान देती हुई ज्योतिष को अधिक समृद्ध बनायेगी।  

संदर्भ सूची / References

१भारतीय ज्योतिष, पृष्ठ ६३०)

२-ज्योतिष तत्वांक,पृष्ठ 433
३-परिशीलनम्, 2005 उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ पृष्ठ 73-76 प्रो.गिरिजाशंकर शास्त्री
४-विश्व के महान गणितज्ञ,पृष्ठ 34-35
५-साइंटिफिक वर्ड- नवनीत कुमार गुप्ता


3 Comments

Amanda Martines 5 days ago

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