एकादश भाव और उपलब्धियां

Author
भारती खरे
ज्‍योतिर्विद्

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प्रत्येक मनुष्य के जीवन में धन का महत्वपूर्ण स्थान होता है ।व्यक्ति अपने और अपने परिवार के लिए सुख सुविधाएं धन के द्वारा ही एकत्रित करता है ।जातक की कुंडली में धन देखने के लिए हम द्वितीय चतुर्थ तथा एकादश भावों का अध्ययन करते हैं।

* द्वितीय भाव -परिवार से प्राप्त संचित धन /पैतृक संपत्ति

* चतुर्थ भाव -अचल संपत्ति, मकान वाहन आदि

* एकादश भाव- अर्जित संपत्ति/ आय

जैसे- एकादश भाव- लाभस्थानेन लग्नादखिलधनच्यप्राप्तिमिच्छन्ति सर्वे। (जा.पा. 15-66)

द्वितीय भाव- वित्तं नेत्रं मुखं विद्या वाक्कुटुम्बाशनानि च । द्वितीयस्थानजन्यानि क्रमाज्ज्योतिर्विदो विदुः ।। जा.पा.11-49

चतुर्थ भाव- वाहनान्यथ बन्धूंश्च मातृसौख्यादिकान्यपि। निधि क्षेत्रं गृहं चापि चतुर्थात्‌ परिचिन्तयेत्‌॥ बृ.पा.हो.12-5॥

एकादश भाव से हमें उस लाभ या आय का पता चलता है जो व्यक्ति स्वयं अर्जित करता है।

एकादश स्थान, दशम स्थान (कर्म )से द्वितीय है अतः स्व कर्मों से प्राप्त होने वाली आय या लाभ को हम एकादश भाव से देखते हैं यह भाव हमारे जीवन में वृद्धि का सूचक है यही कारण है कि इस भाव में सभी ग्रह शुभ फलदाई माने गए हैं।

एकादश भाव से प्रत्येक प्रकार का लाभ जैसे -पुरस्कार, सम्मान, प्रशंसा ,उपलब्धियां, ज्येष्ठ भाई, विद्या ,स्वर्ण ,धन उपार्जन की दक्षता, घुटने, विशिष्ट पदवी, भाग्योदय आदि बातें देखी जाती हैं। जैसे- नानावस्तुभवस्यापि पुत्रजायादिकस्य च। आयं वृद्धिं पशूनां च भवस्थानान्निरीक्षणम्‌॥ बृ.पा.हो.12-12॥

एकादश भाव का बली होना आवश्यक है तभी अन्य भागों के फलों की प्राप्ति भी संभव है।

           उदाहरणार्थ- यदि किसी जातक की कुंडली में द्वितीय भाव का स्वामी स्व,उच्च राशि में स्थित होकर, शुभ ग्रहों से दृष्ट होकर, बली हो किंतु एकादश भाव का स्वामी अस्त हो अथवा 6 ,8 ,12 भाव में स्थित हो तो जातक इच्छा अनुसार धन का अर्जन नहीं कर पाएगा और उसे धन प्राप्ति के लिए संघर्ष करना पड़ेगा उसकी आर्थिक स्थिति सदा डाँवाडोल रहेगी क्योंकि एकादश भाव कमजोर है। ★फलित मार्तंड ग्रंथ के अनुसार- "आयस्थाने सद् गृहैदृष्टि युक्ते सत्खेटानां  वर्गगेsनल्पलाभः ।" अर्थात् यदि एकादश भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट अथवा युक्त हो और शुभ ग्रहों के वर्गों की अधिकता हो तो सदैव लाभ प्राप्त होता है । ★यदि एकादश भाव का स्वामी शुभ ग्रह हो और केंद्र त्रिकोण आदि भागों में स्व,उच्च राशिस्थ होकर स्थित हो,बली शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक की इच्छाओं की पूर्ति होगी। शुभ ग्रहों के प्रभाव में आय के स्रोत अच्छे होंगे और जातक को लक्ष्य की प्राप्ति होगी। ★ दूसरी ओर यदि एकादश भाव में पाप ग्रह बली (स्व,उच्च राशि अथवा वक्री) होकर बैठे हों, तो भी जातक धन उपार्जन तो करता ही है लेकिन यह धन उपार्जन वह अनुचित साधनों से करता है। उपर्युक्त स्थान पर यदि पाप ग्रहों(सूर्य, शनि, मंगल, राहु, केतु) की उपस्थिति या दृष्टि हो तो जातक अनुचित साधनों द्वारा भौतिक एवं आर्थिक उत्थान प्राप्त करता है। ★ लेकिन यदि एकादश भाव का स्वामी अस्त हो अथवा 6, 8, 12 में कहीं पर भी स्थित हो अथवा मृत अंशों में हो तो ऐसे जातक को अपनी प्रतिभा के अनुकूल यथेष्ट लाभ नहीं मिलता। महत्वाकांक्षाएँ अधूरी रह जाती हैं और जीवन संघर्ष करते हुए व्यतीत होता है। भाव मंजरी के अनुसार-लाभेशेsङगे लाभगे  लग्नपाले भूपोदीर्घायुः शुभेनान्विते  सन्।। ★ एकादश स्थान में लग्नेश एवं लग्न में एकादश का योग होने पर मनुष्य राजा होता है। इसके अतिरिक्त वह दीर्घायु भी होता है। ★ यदि एकादशेश व लग्नेश उक्त स्थिति में शुभ ग्रहों से युक्त भी हो तो मनुष्य बहुत सुंदर कार्य करने वाला होता है।  इस प्रकार एकादश भाव का बली होना तथा उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि या प्रभाव स्व अर्जित धन तथा आर्थिक सुदृढ़ता को बताता है।  उदाहरण  1* प्रस्तुत कुंडली में एकादश भाव में उच्च का गुरु विराजमान है एकादशेश तृतीय भाग में नीच राशि का है परंतु नीच योग भंग हो जाने के कारण वह राजयोग कारक है। जातक ने एक साधारण परिवार में एक शिक्षक के घर में जन्म लिया गुरु के शुभ प्रभाव के कारण अपनी मेहनत और ईमानदारी से अपनी सभी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करते हुए उचित साधनों द्वारा धनार्जन किया।

उदाहरण2* कुंडली में यद्यपि एकादश भाव का स्वामी शुभ ग्रह है परंतु उस पर केतु का प्रभाव है।  एकादश भाव शनि मंगल राहु से दृष्ट है। एकादश भाव पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं है यद्यपि एकादशेश पर गुरु की सप्तम दृष्टि है, परंतु गुरु पर शनि की दृष्टि होने के कारण उसका शुभत्व कम हो गया है अतः जातक ने अनुचित साधनों द्वारा आय प्राप्त कर अकूत धन संपत्ति इकट्ठा की है।


3 Comments

Amanda Martines 5 days ago

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