होरा शब्द विचार
होरा शब्द का प्रयोग ज्योतिष में कई अर्थों में किया गया है जैसे-
होराशास्त्र, होरा काल, होरावर्ग, होराघटी आदि। इस लेख के माध्यम से प्रमुखत: 3 अंशों के स्वरूप का विचार किया जा रहा है।
- होरा स्कंध का जीवन में महत्व-
हमारे जीवन में कभी अच्छा समय आता है, तो कभी कठिन समय । जब अच्छा समय रहता है तो हमारे हिसाब से बिजनेस चलता है, अनुकूल फल प्राप्त होते हैं। कुल मिलाकर जैसा चाहते हैं वैसा ही होता है। उम्मीद से दोगुना लाभ भी प्राप्त हो जाता है। परन्तु जब बुरा वक्त आता है, तो सब काम बिगड़ने लगते हैं। ऐसे में हम जप, तप, दान, पूजा-अनुष्ठान इत्यादि कर ईश्वर अथवा संबंधित ग्रह को मनाते हैं, समाधान प्राप्त करने का भरसक प्रयास करते हैं कि बुरा वक्त शांति से निकल जाए। यदि हम सुख के समय भी उपर्युक्त काम करते रहे, तो बुरा समय ही ना आए। पर हमें कैसे पता चलेगा कि हमें क्या करना है, तब भूमिका आती है- ज्योतिषशास्त्र (होराशास्त्र) की। इस शास्त्र के सिद्धान्त, संहिता और होरा नामक तीन स्कन्ध हैं।
▶इस स्कंध की सहायता से मनुष्य भविष्य में मिलने वाले शुभ या अशुभ फल को जान सकता है। होरा शास्त्र में सभी फलों के उपाय भी बताए गए हैं। जैसे आप अंधकार में वस्तु को नहीं देख सकते, परन्तु दीपक की रोशनी में वस्तु को देखा जा सकता है। वैसे ही मानव जीवन में ज्योतिष शास्त्र, होरा स्कंध ज्योति की तरह ही है।
कुल मिलाकर जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यक्ति के लिए फलाफल का निरूपण होरा शास्त्र में किया जाता है। इस शास्त्र में जन्म कुंडली के द्वादश भावों के फल उसमें स्थित ग्रहों की अपेक्षा तथा दृष्टि रखने वाले ग्रहों के अनुसार विस्तार पूर्वक प्रतिपादित किए जाते हैं। मानव जीवन के सुख, दुख, इष्ट, अनिष्ट, उन्नति, अवनति, भाग्योदय आदि समस्त शुभाशुभ का वर्णन इस शास्त्र में रहता है।होरा ग्रंथों में फल-निरूपण के दो प्रकार हैं। एक में जातक के जन्म-नक्षत्र पर से और दूसरे में जन्म-लग्न द्वादश भावों पर से विस्तारपूर्वक विभिन्न दृष्टिकोणों से फलकथन की प्रणाली बतायी गयी है।
(1) होरा शास्त्र के अनुसार, बारह राशि का जो चक्र होता है, वह एक अहोरात्र में एक बार पूरा घूमता है। बारह राशियों के इस भ्रमण में प्रत्येक राशि का उदय होता है। आकाश में राशि के उदय से लग्न का निर्धारण होता है। जातक के जन्म के समय जो राशि आकाश का स्पर्श करती है, वह लग्न कहलाती है। और जो लग्न होती है वह जन्म कुंडली के प्रथम भाव में लिखी जाती है। उसके बाद, अन्य भावों में क्रम से बाकी की राशियां, राशियों के अंक भरे जाते हैं।
(2) होराकाल- प्रत्येक वार से प्रारम्भ होकर होरा चक्र प्रारम्भ होता है और एक ग्रह की होरा एक घण्टे की होती है ऐसा माना जाता है कि हमें किसी वार को कोई शुभ कार्य करना हो और उस दिन वह वार ना हो तो हम उस वार की होरा में वह कार्य कर सकते हैं | ज्योतिष शास्त्र में होरा (एक निश्चित शुभ समय) का विशेष महत्व है | शुभ मुहूर्त के अभाव में कोई मंगल कार्य न रुके इसके लिए ज्योतिष में होरा चक्र की व्यवस्था बनाई गई है | ऐसा कहा जाता है कि होरा काल में किया गया कार्य शुभ मुहूर्त में किये गए कार्य की भांति ही सिद्ध होता है इसलिए होरा शास्त्र को कार्य सिद्धि का अचूक माध्यम माना गया है |
होरा देखने की विधि -सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक 24 होरा होती है और एक सूर्योदय से सूर्यास्त तक होरा की संख्या 12 होती है | प्रत्येक दिन के प्रारम्भ में प्रथम होरा उसी ग्रह की होती है जिसका वह वार होता है, जबकि अगली होरा उसी दिन से छठे दिन की होगी और यही क्रम आगे बढ़ता जायेगा |
उदाहरण -
सोमवार को किसी भी ग्रह की होरा देखनी हो तो हम उसे इस प्रकार देखेंगे ---
पहली होरा- चन्द्र ग्रह की होगी
दूसरी होरा - शनि ग्रह
तीसरी होरा- गुरु ग्रह
चौथी होरा- मंगल ग्रह
पाँचवीं होरा- सूर्य ग्रह
छटवींहोरा- शुक्र ग्रह
सातवीं होरा- बुध ग्रह
आठवीं होरा- चन्द्र ग्रह की होगी और यह क्रम ऐसे ही चलता रहेगा |
इस प्रकार जो भी वार हो उसी वार की होरा से आगे की होरा निकाली जा सकती है और अपने कार्य सफल बनाने के लिए उसका प्रारम्भ किया जा सकता है |
प्रत्येक ग्रह की होराका महत्व' किसी विशेष कार्य के लिए शुभ होती है, जो की निम्न है|
सात ग्रहों के सात होरा- हैं, जो दिन रात के 24 घंटों में घूमकर मनुष्य को कार्य सिद्धि के लिए अशुभ समय में भी शुभ अवसर प्रदान करते हैं।
किये जाने वाले कार्य |
होराग्रह |
राज सेवा के लिए |
सूर्य का होरा |
यात्रा के लिए |
शुक्र का होरा |
ज्ञानार्जन के लिए |
बुध का होरा |
सभी कार्यों की सिद्धि के लिए |
चंद्र का होरा |
द्रव्य संग्रह के लिए |
शनि का होरा |
विवाह के लिए |
गुरु का होरा |
युद्ध, कलह और विवाद में विजय के लिए |
मंगल का होरा |
(3) होरा वर्ग- " राश्यर्द्धमितिहोरा" अर्थात राशि का आधा भाग होरा होता है | इसे होरा कुण्डली भी कहते हैं। एक राशि का मान 30 अंश होता है और एक राशि में 15-15 अंश की दो होरा होती हैं। लग्न, चंद्र या अन्य कुंडलियों में 12 घर होते हैं लेकिन होरा कुंडली में मात्र दो ही घर होते हैं और इनमें सूर्य और चंद्र की होरा होती है। अर्थात् सिंह और कर्क लग्न होता है। होरा कुंडली का निर्माण जातक की लग्न कुंडली के आधार पर किया जाता है।
होरा कुंडली का अध्ययन किए बिना जातक के संपूर्ण जीवन का फलादेश अधूरा रहता है। होरा कुंडली से जातक को जीवन में मिलने धन, सुख, वैभव, संपत्ति, भौतिक सुख-सुविधाओं आदि का अध्ययन किया जाता है।
होराकुण्डली बनाने का नियम-...
- यदि लग्न कुंडली में लग्न में सम राशि हो और लग्न का मान 0 से 15 अंश तक हो तो होरा लग्न चंद्र का होगा
- यदि लग्न कुंडली में लग्न में सम राशि हो और लग्न का मान 16 से 30 अंश तक हो तो होरा लग्न सूर्य का होगा
- यदि लग्न कुंडली में लग्न में विषम राशि हो और लग्न का मान 0 से 15 अंश तक हो तो होरा लग्न सूर्य का होगा
- यदि लग्न कुंडली में लग्न में विषम राशि हो और लग्न का मान 16 से 30 अंश तक हो तो होरा लग्न चंद्र का होगा
- सम राशि - (2,4,6,8,10,12) वृष,कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन
- विषम राशि- (1,3,5,7,9,11) मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुम्भ
होरा |
0 अंश -15 अंश |
16 अंश - 30 अंश |
विषम राशि |
सूर्य (सिंह) |
चंद्र(कर्क) |
सम राशि |
चंद्र(कर्क) |
सूर्य (सिंह) |
- इस प्रकार सम राशि में प्रथम होरा चंद्र की और दूसरी सूर्य की होती है।
- जबकिविषम राशि में प्रथम होरा सूर्य की और दूसरी चंद्र की होती है।
होरा लग्न का निर्धारण हो जाने के बाद सभी ग्रहों को भी इसी प्रकार उनके राशि, अंश, कला, विकला देखकर सूर्य या चंद्र के खाने में स्थापित कर लेते हैं।होराकुण्डली के लग्न का निर्धारण अर्थात लग्न सूर्य की होगी या चंद्र की, व्यक्तिके लग्न कुंडली से ही होता है |
विषम राशि : 1-मेष, 3-मिथुन, 5-सिंह, 7-तुला, 9-धनु, 11-कुंभ
सम राशि : 2-वृषभ, 4-कर्क, 6-कन्या, 8-वृश्चिक, 10- मकर, 12-मीन
- होराकुण्डली स्वामी-
1. चंद्र की होरा में स्वामी- पितृगण
2. सूर्य की होरा में स्वामी- देवता
- होराकुण्डली में बलवान् ग्रह -
1. चंद्र की होरा में स्त्री ग्रह बलवान् होते है |
2. सूर्य की होरा में पुरुष ग्रह बलवान् होते है |
3. शुभ ग्रह (गुरु,शुक्र,चंद्र,बुध) चन्द्रमा की होरा में बलवान् होते है |
4. अशुभ ग्रह सूर्य की होरा में बलवान् होते है |
- सूर्य अथवा चंद्र की होती है होरा लग्न-
जातक के जन्म के समय या तो सूर्य की होरा लग्न होगी अथवा चंद्र की होरालग्न। यदि जातक सूर्य की होरा लग्न में उत्पन्न होता है तो वह पराक्रमी, स्वाभिमानी एवं बुद्धिमान दिखाई देता है। सूर्य के साथ शुभ अशुभ ग्रहों के होने से शुभ अशुभ फल जातक को प्राप्त होंगे।
यदि जातक का जन्म चंद्र की होरा लग्न में हुआ हो तथा चंद्र शुभ ग्रहों के साथ है, तो संबंधित जातक को सम्पदा, वाहन एवं परिवार का सुख प्राप्त होता है, वही चंद्र को पाप ग्रहों का साथ मिले, तो जातक को मानसिक तनाव का सामना करना पडता है।
फल दीपिका ग्रन्थ के होरा फल विचारके निम्न श्लोकानुसार कहा गया है -
ओजेक्रूरेSर्कहोरांगतवतिबलवान्क्रूरवृत्तिर्धनाढ्यो
युग्मेचान्द्रींशुभेषुद्युतिविनयवचोहृद्दसौभाग्ययुक्त: |
व्यस्तंव्यस्तेSत्रमिश्रेसमफलमुदितंलग्नचन्द्रौबलिष्ठौ
तन्नाथौद्वौ च तद्वद्ददिभवतिचिरंजीव्यदुःखीयशस्वी ||
अर्थात् क्रूर ग्रह जन्म समय में विषम राशियों में 'सूर्य होरा' में हो तो मनुष्य दबंग व धनी होता है |
सम राशियों में शुभ ग्रह अर्थात् चंद्र की होरा में हो तो शोभा, विनय , सौभाग्ययुक्त होता है |
मिश्रित स्थिति में अर्थात् क्रूर ग्रह सम राशि सूर्य होरा या विषम राशि चंद्र होरा में और शुभ ग्रह सम राशि सूर्य होरा में या विषम राशि चंद्र होरा में हो तो मध्यमफल होता है |
लग्न व चन्द्रमा बली हों और दोनों की राशियों के स्वामी भी बली हों तो मनुष्य चिरंजीवी , सुखी यशश्वी होता है |
होरा के विविध प्रयोगों का शास्त्र के अनुसार उपयोग करने में कई लाभ प्राप्त होते हैं। जैसे- होरा शास्त्र से कुण्डली का अध्ययन, होरा काल से मुहूर्त का विचार और होरा कुण्डली से कुण्डली के सूक्ष्म अंशों का विचार आदि। इस तरह प्रस्तुत लेख के माध्यम से उन अंशों को समझने का प्रयास किया गया है। ये सभी अंश बहुत विस्तार पूर्वक ग्रंथों में आचार्यों के द्वारा ग्रंथों में कहे गये हैं जिसको अपने शब्दों में यहॉं स्पष्ट किया गया है।
संदर्भ सूची / References
- वृहत् पाराशरहोरा शास्त्र
- मानसागरी,
- सारावली
- वृहज्जातक
- जातकाभरण
- चमत्कार चिन्तामणि
- ज्योतिष कल्पद्रुम
- जातकालंकार
- जातक तत्व
- होरा शास्त्र
Amanda Martines 5 days ago
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