आवासीय वास्तु
"वस् " धातु तुण् प्रत्यय योग से "वास्तु" शब्द बनता है | यास्क मुनि ने कहा है - " वस्तुर्वस्ते निवासकर्मणः " | इस प्रकार, कई प्रकार से वास्तु को परिभाषित कर सकते है | वास्तु मानव जीवनोपयोगी विज्ञान के रूप में अधिस्वीकृत है | ऋषियों ने इष्टापूर्त के अंग के रूप में इसे मान्यता दी हैं | समराङ्गण सूत्रधार में वास्तु की आवश्यकता को कथा रूप मे वर्णित किया है जो वायुपुराण के सहदेवाधिकार से प्रेरित है | यह मानवीय सृष्टि के विकासक्रम का बोधक भी हैं | वास्तु कई प्रकार के होते हैं | उनमे से आवासीय वास्तु सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं | भविष्य पुराण में कहते है -
" गृहस्थस्य क्रियाः सर्वा न सिद्धयन्ति गृहं विना " | अर्थात, गृह के आभाव में कभी गृहस्थ के कार्यों की सिद्धि नहीं होती है |
वास्तुशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र आपस में अभिन्न अंग हैं | अतः राशियों को लेकर आचार्य कहते है:-
प्रथमे सप्तमे ग्रामे वैरं हानिस्त्रिषष्ठ्गे | तुर्याष्टद्वादशे रोगः शेषस्थाने शुभं भवैत् ||
व्यक्ति को जिस गांव या नगर में रहना है उसकी राशि ज्ञात करे | यदि वह राशि व्यक्ति की राशि से पहली, सातवीं हो तो निवास करने पर वैरभाव बढ़ता हैं | तीसरी और छटवी राशि हो तो हानि तथा चौथी, आठवीं बारहवीं राशि हो तो रोग का कारण होता हैं जबकि दूसरी, पांचवी, नवी, दसवीं और ग्यारहवीं हो तो वहां निवास करना शुभ और लाभप्रद होता हैं |
काकिणयां वर्गशुद्धौ च द्यूते वादे गृहे तथा | मंत्रे पुनर्र्भूवरणे नामराशेः प्रधानता ||
नामराशि का चुनाव काकिणी गणना, वर्गशुद्धि, द्यूतक्रीड़ा, वादविवाद या शास्त्रार्थ मंत्र-दीक्षा ग्रहण और पुनर्विवाहादि अवसरों पर नाम राशि को प्रमुखता दी जाती हैं | इसी प्रकार स्वरांक, वर्गांक आदि से गृह की दिशा का विचार किया जा सकता है कि कौनसी राशि और वर्णो के व्यक्ति को किस दिशा मे रहना लाभप्रद होगा | नक्षत्र मिलान करके भी शुभाशुभ ज्ञात कर सकते हैं | नराकृति चक्र से भी किसी गांव या नगर में बसना लाभप्रद है या नहीं, यह नक्षत्रों के न्यास से जाना जा सकता हैं |
नराकृति स्फुटार्थ चक्रम् –
ग्रा. न. सं. |
अंग |
फल |
5 |
सिर |
लाभ |
3 |
मुख |
धन हानि |
5 |
कुक्षि |
धन-धान्य लाभ |
6 |
पैर |
स्त्री अभाव |
1 |
पीठ |
पैर में कष्ट |
4 |
नाभि |
धन संपदा |
1 |
गुदा |
भय पीडा |
1 |
दांया |
युद्ध |
1 |
बांया |
भेद |
इसी प्रकार स्वरांक, वर्गांक, शिवावलि निरूपण आदि विधियों से निवासकर्ता के लिए उस गांव या शहर की दिशा निवास करने के लिए शुभ है अथवा नहीं, यह ज्ञात किया जा सकता हैं | दिशा ज्ञात करने के बाद भूमि का वर्ण, गंध, स्वाद,दिशा, घासफूस एवं प्लव के आधार पर जान सकते है कि किस राशि के जातक के लिए कोई भूमि शुभ है या अशुभ हैं |
ब्राह्मण |
क्षत्रिय |
वैश्य |
शूद्र |
अन्य |
|
राशियाँ |
४,८,१२ |
१,५,९ |
२,६,१० |
३,७,११ |
|
वर्ण |
श्वेत |
रक्त |
पीत |
कृष्ण |
मिश्रित वर्ण |
स्वाद |
मधुर |
कटु |
तिक्त |
कषाय |
मिश्रित |
गंध |
घृत |
रक्त |
अन्न |
मद्य |
मिश्रित |
दिशा |
उत्तर |
पूर्व |
दक्षिण |
पश्चिम |
|
घासफूस |
कुशा |
कास |
कुषाकास |
सर्व तृणा |
|
प्लव |
उत्तर |
पूर्व |
दक्षिण |
पश्चिम |
|
फल |
सभी सुख |
राजयोग |
धनलाभ |
शूद्र वर्ण के जातको के लिए शुभ |
भूखंड के पृष्ठ के आधार पर भूखंड के प्रकार : -
गजपृष्ठ भूगि लक्षण-
दक्षिणे पश्चिमे चैव नैर्ऋतौ वायुकोणके। एभिरुच्चा भवेद् भूमिः गजपृष्ठाभिधीयते॥
फल- गजपृष्ठे भवेद् वासः स लक्ष्मीधनपूरितः। आयुर्वृद्धिकरो नित्यं जायते नात्र संशयः॥
गजपृष्ठ भूमि - दक्षिण पश्चिम नैऋत्य एवं वायु कोण में उच्च तथा उत्तर ईशान पूर्व एवं आग्नेय दिशा में नीची हो तो उसे गजपृष्ठ भूमि कहेंगे | यह निवासकर्ता के लिए लक्ष्मी, धनधान्य और आयु को बढ़ाने वाली होती हैं |
कूर्मपृष्ठ भूमि लक्षण- मध्ये तूच्चं भवेद्यत्र नीचं चैव चतुर्दिशम्। कूर्मपृष्ठा भवेद् भूमिस्तत्र वासः शुभप्रदः॥
फल- कूर्मपृष्ठे भवेद् वासो नित्योत्साहसुखप्रदः। कूर्मपृष्ठ भूमि - जो भूमि मध्य भाग में विशेष रूप से ऊँची उठी हुई हो एवं चारों दिशाओं में नीची हो कूर्मपृष्ठ कहलाती हैं | यह भूमि निवासकर्ता को नित्य उत्साह, सुख और धनधान्य को देने वाली कही गई हैं |
दैत्यपृष्ठ भूमि लक्षण- पूर्वाग्निशम्भुकोणेषु भूमौ यद्युनतिर्भवेत्। पश्चिमे च यदा नीचं दैत्यपृष्ठाभिधीयते।।
फल- दैत्यपृष्ठ भवेद् वासो नक्ष्मी याति मन्दिरे। धनपुत्रपशूनां च हानिरेव न संशयः॥
दैत्य पृष्ठ्भूमि - पूर्व, ईशान व् आग्नेय कोण में को भूमि ऊँची तथा पश्चिम दिशा की ओर नीची हो तो वह दैत्य पृष्ठा भूमि कहलाती हैं | यहाँ निवासकर्ता को धन, पुत्र एवं पशुधन की हानि होती हैं |
नागपृष्ठ भूमि लक्षण- पूर्वपश्चिमयोर्दैर्घ्य दक्षिणोत्तर उच्चता। नागपृष्ठं विजानीयात् कर्तुरुच्चाटनं भवेत्॥
फल- नागपृष्ठे सदा वासो मृत्युरेव न संशयः। पत्नीहानिः पुत्रहानिः शत्रुवृद्धिः पदे पदे॥ नागपृष्ठ भूमि - पूर्व पश्चिम दिशा में अधिक लम्बी और दक्षिण उत्तर दिशा में ऊँची भूमि हो तो वह भूमि नागपृष्ठ भूमि कहलाती हैं | यहाँ निवासकर्ता को मृत्युभय , स्त्री-पुत्र हानि एवं शत्रुवृद्धि होती हैं |
आकृति द्वारा भूमि परीक्षण- आयते सिद्धयः सर्वाश्चतुरश्रे धनागमः। वृत्ते तु बुद्धिवृद्धिः स्याद्भद्र भद्रासने भवेत्॥
चक्रे दारिद्रयमित्याहुर्विषमे शोकलक्षणम्।
राजभीतिस्त्रिकोणे तु शकटे तु धनक्षयः।।
दण्डे पशुक्षयं प्राहुः सूर्पे वासे गवां क्षयः।
कूर्मे तु बन्धनं पीडा धनुःक्षेत्रे भये महत्॥
कुम्भाकारे कुष्ठरोगो भवत्येव न संशयः।
पवने नश्यति नेत्रं च मुरजे बन्धुविनाशनम्॥
इसी प्रकार आकार के आधार पर १६ प्रकार की भूमि कही गयी हैं जैसे आयताकार, वर्गाकार, वृत्ताकार, भद्रासन, चक्राकार, विषमबाहु, त्रिकोणाकार, शकटाकार, दण्डाकार, पनवस्थान, मृदँगाकर, बहुमुखी, व्यजनाकार, कूर्माकार, धनुषाकार, सूर्पाकार जिनके फल निवासकर्ता के लिए शुभ, अशुभ अथवा मिश्रित होते हैं |
जिनके फल निवासकर्ता के लिए शुभ, अशुभ अथवा मिश्रित होते हैं |
वास्तु चयन क्रम में सर्वप्रथम भूमि परिक्षण करना चाहिए ऐसा शास्त्र का आदेश हैं | यथा मत्स्यपुराण कहता हैं -
पूर्वं भूमिं परीक्षेत पश्चाद वास्तुं प्रकल्पयेत ||
भूमि परीक्षण की विधियाँ- धनधान्यं भवेत्तस्य निश्चितं विपुलं सदा।। पूर्वोत्तरे लवं लक्ष्मीरीशाने च शुभप्रदम्।। भूमि चयन के बाद शल्य शोधन द्वारा भूमि को शुद्ध किया जाता हैं | भूमि चयन एवं शोधन के बाद, राशियों के आधार पर दिशाओं को निश्चित कर वास्तु पूजन किया जाता हैं | आवासीय वास्तु के लिए एकाशिति (८१) पदवास्तु पूजन का विधान हैं | गृह निर्माण आरम्भ करने से पूर्व वृषवास्तु चक्र के द्वारा शुभ नक्षत्रों को ज्ञात कर गृह निर्माण कार्य प्रारम्भ करना चाहिए | शोधन एवं परीक्षण की प्रक्रिया के बाद यदि कोई वास्तुदोष रह जाता है तो वृक्षारोपण के द्वारा उसे दूर किया जा सकता हैं | पूर्व में बरगत, आग्नेय में अनार, दक्षिण में गूलर, नैऋत्य में इमली, पश्चिम में पीपल, वायव्य में बेल, उत्तर में पाकड़, ईशान कोण में आँवले का वृक्ष लगाकर वास्तुदोष दूर कर सकते हैं |
भारतीय मनीषियों के द्वारा प्रतिपादित वास्तुशास्त्र, उनके सुदीर्घ कालिक चिंतन, मनन एवं अनुसन्धान का प्रतिफल हैं, जो निश्चित ही मानव के लिए प्रसादरूप हैं | इस प्रसादरूप वास्तुशास्त्र के अनुपालन से जीवन निश्चित ही प्रसादमय हो जाता हैं | भारतीय वास्तुशास्त्र का स्पष्ट निर्देश हैं कि सुखमय जीवन कामना से भूमि चयन से लेकर गृह प्रवेश पर्यन्त सभी वास्तु सम्बन्धी कार्य वास्तुशास्त्र के अनुसार वास्तु विशेषज्ञ के निर्देशन में सम्पादित करने चाहिए |
संदर्भ सूची / References
१. वास्तुराजवल्लभ (११, १४)
२. वास्तुरत्नाकर
३. मत्स्य पुराण (अ -२५५ श्लोक ११ पूर्वार्ध)
४. वास्तु रत्नावली (भूपरिग्रहाध्याय - पृष्ठ १७ )
५. वास्तु रत्नावली ( पृष्ठ १४, १५ )
६. वास्तु सारसंग्रह (३. १४ - १७)
७. वृहत्संहिता
८. साम्प्रतिक वास्तुशास्त्र (संकलन - डॉ. रविंद्र प्रसाद उनियाल)
९. ज्योतिष विश्वकोश एप (निर्माता : डॉ. भूपेंद्र पांडेय)
१०. विकिपीडिया
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