ज्योतिष में कालगणना
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस पृथ्वी पर चराचर की सृष्टि 30,67,20,000 (30 करोड, 67 लाख, 20 हजार) सौर वर्ष के लिये हुआ है, जिसमें अभी तक 12,05,33,113 (12 करोड, 5 लाख, 33 हजार, 1 सौ, 13) वर्ष बीत चुके हैं तथा 18,61,86,887 (18 करोड, 61 लाख, 86 हजार, 8 सौ, 87) वर्ष बाँकी हैं।[1]
यह तो रही साम्प्रतिक प्रवर्तमान भूतलीय सृष्टि की बात। हमारे भारतीय प्राच्य चिन्तकों नें तो ऐसे ऐसे चौदह सृष्टि का डाटा, जो 1,000 महायुग (1,000 × 43,20,000 = 4,32,00,00,000 सौरवर्ष) के बराबर होता है, प्रदान किया है। गजब की बात तो यह है कि इतनी बडी काल गणना, जिसको सुरक्षित रखने के लिये, अथवा इसकी अद्यतन जानकारी के लिये न किसी कालज्ञापक यन्त्र की जरूरत है और न ही किसी डाटा संग्राहालय की। वस इसके लिये जरूरत है हमारे भारतीय ज्योतिष में विद्यमान ग्रहगणित की, जिसके द्वारा सृष्ट्यादि से लेकर अद्यावधि अनवच्छिन्न रूप से स्वतः काल की सरणी बनती आ रही है, जिसे हम पञ्चाङ्ग के रूप में जानते हैं। इसी पञ्चाङ्ग के सहारे गाँव के पण्डित एवं पुरोहित भी नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य कर्मारम्भ के समय सङ्कल्प वाचन में कल्पारम्भ से आज तक के व्यतीत काल का सम्पूर्ण विवरण (कैलेण्डर) कह डालते हैं। उदाहरण के रूप में साम्प्रतिक सङ्कल्प को देखा जा सकता है। यथा-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणः अह्नि द्वितीये परार्धे विष्णुपदे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशे पुरीक्षेत्रे विक्रमशके बौद्धावतारे अमुकनामसंवत्सरे श्रीसूर्ये अमुकायने अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकनक्षत्रे अमुकयोगे अमुककरणे अमुकराशिस्थिते चन्द्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकराशिस्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथायथाराशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ अमुकगोत्रः अमुकशर्माहम् अमुककामनया अमुकदेवतापूजनं करिष्ये। इति।
वस्तुतः समग्र संसार में भारत के अलाबा इस तरह के बृहत्तम कालगणना को स्मृति पथ पर रखने की अनोखी परम्परा अन्यत्र कहीं नहीं है। निश्चय ही सङ्कल्प में देश-काल का सङ्कीर्तन हमारे भारतीय मनीषियों के दूरगामी चिन्तन का एक ज्वलन्त उदाहरण ही तो है। चाहे अरबों वर्ष तक सृष्टि क्यों न चले, इसकी कालगणना स्वाभाविक रूप से होती रहेगी। क्यों कि इसका सम्बन्ध हमारी संस्कृति से इस तरह जुडा हुआ है कि वह अनवच्छिन्न रूप से अपने आप होती रहेगी। इसके लिये अलग से किसी कार्यालय या संग्रहालय की आवश्यकता नही है।
भारतीय ज्योतिष अपने आप में परिपूर्ण एवं प्रामाणिक खगोलविज्ञान है, जिसमें ग्रहचार के अनुसार सूक्ष्म से सूक्ष्मतम तथा बृहत् से बृहत्तम कालगणना का विज्ञान सन्निहित है। यथा सूर्य के चार से वर्ष, अयन, ऋतु, युग, महायुग आदि की गणना, चन्द्रचार से तिथि एवं मास की गणना, सूर्य के क्षितिजोदय से सावन दिन (रवि आदि सात वारों) की गणना, नक्षत्रोदय से घटी-पलादि की गणना, गुरुचार से विजयादि/प्रभवादि षष्टि संवत्सर की गणना, जो विभन्न धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों के लिये उपयोगी हैं। जैसे भास्कराचार्य लिखते हैं-
वर्षायनर्तुयुगपूर्वकमत्र सौरान् मासास्तथा च तिथयस्तुहिनांशुमानात्।
यत्कृच्छ्रसूतकचिकित्सितवासराद्यं तत्सावनाच्च घटिकादिकमार्क्षमानात्।।
अर्थात् वर्ष, अयन, ऋतु, युग, महायुग आदि की गणना में सौरमान का, तिथि एवं मास की गणना में चान्द्रमान का, सूतक, चिकित्सा, दिन आदि की गणना में सावनमान का तथा घण्टा-मिनट, घटी-पल आदि की गणना में नाक्षत्रमान का प्रयोग होता है।
इसी तरह गुरु के चार से षष्टिसंवत्सर का प्रयोग, समय के शुद्धाशुद्धिविचार में किया जाता है। क्यों कि विवाहादि शुभकार्यों में समय का शुद्धाशुद्धिविचार अपेक्षित होता है।
इस तरह स्पष्ट है कि काल गणना का आधार ग्रहगणित है, जो (ग्रहगणित) संसार का प्राचीनतम खगोलविद्या-भारतीयज्योतिष का प्रतिपाद्य है। इसमें सन्देह नहीं कि संसार में यदि सूक्ष्मतम एवं निर्दुष्ट काल का डाटा यदि कहीं है तो वह भारतीय ज्योतिषशास्त्र है, अन्यत्र कहीं नहीं। उदाहरण के रूप में आज के परिप्रेक्ष में संसार का सवसे प्रसिद्ध एवं व्यापक क्रीष्ट वर्ष को ही ले लें। इसमें सब कुछ हमारे भारतीय सौरवर्ष का अनुकरण है। यथा- सौरवर्ष में 12 राशियों का 12 सौरमास होते हैं, अतः क्रीष्ट वर्ष में भी जनवरी, फरवरी आदि 12 मासों की कल्पना की गई है। इसी तरह 1 राशि में 30 अंश के तुल्य 30 दिन होते हैं, अतः जनवरी, फरवरी आदि मासों में भी 30 - 30 दिन के आसन्न दिन की संख्या कल्पना की गई है। ध्यान रहे, यहाँ ठीक-ठीक 30 दिन का मास मानने से हमारे सौर वर्ष से क्रीष्ट वर्ष की संगति नही बैठती। अतः पाश्चात्य चिन्तकों को जनवरी, फरबरी आदि मासों की दिन संख्या में कहीं 30 से अधिक तो कहीं 30 से कम करना पडा। क्यों कि सौरवर्ष जो कि भारतीय ज्योतिष के द्वारा सूक्ष्मतया ज्ञात होता है, वह 365 सावन दिन, 6 घंटे, 12 मिनट, 9 सेकेण्ड में पूरा होता है। यदि जनवरी, फरवरी आदि मासों को 30-30 दिन का माना जाता तो 360 सावन दिन में ही क्रीष्ट वर्ष की पूर्ति हो जाती। अतः स्पष्ट है कि भारतीय सौरमान का अनुसरण करने के लिये ही जनवरी, फरवरी आदि मासों में उन्हें 31+28+31+30+31+30+31+31+30+31+30+31=365 के रूप में दिन की संख्या में विसंगति करनी पडी। इस तरह दिन की संख्या में विसंगति करने से क्रीष्ट वर्षान्त में 365 सावन दिन तो हो गये किन्तु 6 घंटे, 12 मिनट, 9 सेकेण्ड का अन्तर रह ही गया। अतः घण्टा सम्बन्धी विसंगति को दूर करने के लिये उन्हों नें प्रत्येक चौथे वर्ष में लीप इयर की कल्पना की जिसमें फरबरी को 29 दिन का माना गया, क्यों कि 6×4=24घंटा = 1 दिन होता है। इस तरह मासों की दिनसंख्या में विसंगति करने के बाद क्रीष्टवर्ष भारतीय सौरवर्ष के आसन्न तो हो गया लेकिन पूर्णतः समान नही हो पाया। क्रीस्तवर्षान्त में 12 मिनट, 9 सेकेण्ड का अन्तर रह ही जाता है। क्यों कि 3200 (तीन हजार दो सौ) वर्षों के बाद क्रीष्टवर्ष में पूरा-पूरा 4 दिन का अन्तर आता है। अतः भारतीय सौरवर्ष के साथ उस 12 मिनट, 9 सेकेण्ड का यथा सम्भव सामञ्जस्य बनाये रखने के लिये 3200 क्रीष्टाब्द तक निम्न प्रकार से एक-एक दिन का संस्कार किया जा सकता है।
चूंकि 12.09 मिनटादि × 119 = 1 दिन, 5 मिनट, 51 सेकेण्ड होता है।
अतः, 119 क्रीस्ताब्द में फरबरी में 28 दिन की जगह 29 दिन मानना होगा।
पुनः 5.51 × 247 = 1 दिन, 4 मिनट, 57 सेकेण्ड होता है।
अतः, 247 क्रीस्ताब्द में फरबरी में 28 दिन की जगह 29 दिन मानना होगा।
पुनः 4.57 × 291 = 1 दिन, 00 मिनट, 27 सेकेण्ड होता है।
अतः, 291 क्रीस्ताब्द में फरबरी में 28 दिन की जगह 29 दिन मानना होगा।
पुनः 00.27 × 3200 = पूरा-पूरा 1 दिन होता है।
अतः, 3200 क्रीस्ताब्द में फरबरी में 29 दिन की जगह 30 दिन मानना होगा।
इस तरह 3200 क्रीस्ताब्द के बाद पुनः 119,247,291 तथा 3200 वर्षें के अन्तराल पर उपर्युक्त संस्कार करते रहने से क्रीस्तवर्ष सौरवर्ष के समकक्ष बना रह सकता है। अन्यथा 3200 वर्षों के बाद क्रीस्त वर्ष चार-चार दिन पीछे हो सकता है। अतः सन्देह नहीं कि संसार में कालगणना का प्राचीनतम एवं प्रामाणिक पद्धति यदि कहीं है तो वह एकमात्र भारतीय ज्योतिष है।
भारतीय मनीषियों नें काल के सूक्ष्म से सूक्ष्मतम तथा बृहत् से बृहत्तम मानों के बारे में चिन्तन किया है। यहाँ सूक्ष्मतम काल के रूप में त्रुटि काल को तथा महत्तम काल के रूप में ब्राह्म मान को लिया गया है।
1. सूक्ष्म काल
कमल पत्र भेदन काल को त्रुटि काल कहते हैं-
सूच्या भिन्ने पद्मपत्रे त्रुटिरित्यभिधीयते।
तत्षष्ट्या रेणुरित्युक्तो रेणुषष्ट्या लवः स्मृतः।।
तत्षष्ट्या लीक्षकं प्रोक्तं तत्षष्ट्या प्राण उच्यते।।[2]
यह त्रुटिकाल सेकेण्ड का 32,40,000 वाँ भाग के तुल्य होता है। इस तरह[3]--
1 त्रुटि = कमल पत्र भेदन काल = 132,40,000 सेकेण्ड ।
60 त्रुटि = 1 रेणु = 150004 सेकेण्ड ।
60 रेणु = 1 लव = 1900 सेकेण्ड ।
60 लव = 1 लीक्षक = 115 सेकेण्ड ।
60 लीक्षक = 1 प्राण = 10 दीर्घाक्षर उच्चारण काल = 4 सेकेण्ड
2. बृहत्तम काल[4]
सूर्य का एक अंशभोगकाल = एक सौर दिन ।
,, 30 अंश (एक राशि) भोग काल = एक सौर मास ।
,, 12 सौर मास (द्वादशराशि भोगकाल/एक भगण) = एक सौर वर्ष।
1 सौरवर्ष[5] = 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनट, 9 सेकेण्ड
17,28,000 सौरवर्ष = सत्ययुग
12,96,000 सौरवर्ष = त्रेतायुग
8,64,000 सौरवर्ष = द्वापरयुग
4,32,000 सौरवर्ष = कलियुग
43,20,000 सौरवर्ष = सत्ययुग+त्रेतायुग+द्वापरयुग+कलियुग= महायुग।
71 महायुग = 1 मनु
17,28,000 सौरवर्ष = सन्धि काल (प्रत्येक मनु के अदि/अन्त में)।
इसी सन्धि काल को खण्ड प्रलय भी कहते हें। खण्ड प्रलय के समय पृथ्वी जलमग्न हो जाती है।
14 मनु + 15 सन्धि = 1000 महायुग = 1 ब्राह्म दिन
= 1 कल्प = महाप्रलय।
(एक कल्प में, एक सर्वप्रथम मनु के आदि में तथा चौदह प्रत्येक मनु के अन्त में, कुल 15 सन्धियाँ होती हैं।)
360 ब्राह्म दिन =1 ब्राह्म वर्ष
100 ब्राह्म वर्ष =1 ब्रह्मा की आयु
50 ब्राह्म वर्ष =वर्तमान ब्रह्मा की आयु
(51 वाँ वर्ष चल रहा है)
इसी कालमान के अनुसार प्रवर्तमान सृष्टि का व्यतीत काल एवं अवशिष्ट काल का सही सही ज्ञान किया जा सकता है। यथा-
1. प्रवर्तमान भूतलीय सृष्टि का व्यतीत काल[6]
27 महायुग = 27× 43,20,000 = 11,66,40,000 सौर वर्ष
सत्ययुग.......................................-.17,28,000 ,, ,,
त्रेतायुग..........................................12,96,000 ,, ,,
द्वापरयुग..........................................8,64,000 ,, ,,
कलियुग................................................5,113 ,, ,,
कुल योग (वर्मान भूतलीय सृस्टि का व्यतीत वर्ष)...12,05,33,113 सौर वर्ष।
2. प्रवर्तमान भूतलीय सृष्टि का अवशिष्ट समय[7]
1 मन्वन्तर = 71× 43,20,000 = 30,67,20,000 सौर वर्ष
भूतलीय सृस्टि का व्यतीत वर्ष (- ) 12,05,33,113 ,, ,,
भूतलीय सृष्टि का अवशिष्ट समय......18,61,86,887 सौर वर्ष।
इस तरह समस्त संसार में कालगणना का आधार एक मात्र ग्रहों की दैनिक, मासिक तथा वार्षिक गति है, जिसका सूक्ष्म एवं अविच्छिन्न ज्ञान सृस्ट्यादि से अद्यावधि एक मात्र भारत में होता आ रहा है, और इसका श्रेय भारतीय ज्योतिष को जाता है। इसके सम्बन्ध में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी के लिये ज्योतिष शास्त्र के सूर्यसिद्धान्त, ब्रह्मसिद्धान्त आदि आर्ष ग्रन्थों का अध्ययन किया जा सकता है।
संदर्भ सूची / References
[1] सूर्यसिद्धान्त, मध्यमाधिकार, श्लो.15-18,
[2] सूर्यसिद्धान्त, मध्यमाधिकार, श्लो.12, श्रीतत्वामृतभाष्ये
[3] सूर्यसिद्धान्त, मध्यमाधिकार, श्लो.12, श्रीतत्वामृतभाष्ये
[4] सूर्यसिद्धान्त, मध्यमाधिकार, श्लो.13-21,
[5] सूर्यसिद्धान्त, मध्यमाधिकार, श्लो.29, श्रीतत्वामृतभाष्ये
[6] सूर्यसिद्धान्त, मध्यमाधिकार, श्लो.22-23,
[7] सूर्यसिद्धान्त, मध्यमाधिकार, श्लो.22-23,
Amanda Martines 5 days ago
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