ज्योतिष में गुरु के कारकत्व विचार
ऋग्वेद के अनुसार बृहस्पति को अंगिरस ऋषि का पुत्र माना जाता है और शिव पुराण के अनुसार इन्हें सुरुप का पुत्र माना जाता है। इनके दो भ्राता हैं: उतथ्य एवं सम्वर्तन। इनकी तीन पत्नियां हैं। प्रथम पत्नी शुभा ने सात पुत्रियों भानुमति, राका, अर्चिश्मति, महामति, महिष्मति, सिनिवली एवं हविष्मति को जन्म दिया था। दूसरी पत्नी तारा से इनके सात पुत्र एवं एक पुत्री हैं तथा तृतीय पत्नी ममता से दो पुत्र हुए कच और भरद्वाज। बृहस्पति ने प्रभास तीर्थ के तट पर भगवान शिव की अखण्ड तपस्या कर देवगुरु की पदवी पायी। तभी भगवान शिव ने प्रसन्न होकर इन्हें नवग्रह में एक स्थाण भी दिया। कच बृहस्पति का पुत्र था या भ्राता, इस विषय में मतभेद हैं। महाभारत के अनुसार कच इनका भ्राता ही था।
ज्योतिष में गुरु ग्रह का बहुत महत्त्व है। सभी ग्रहों में यह सर्वाधिक शुभ ग्रह माना जाता है। कालपुरुष में इसे देवाचार्यः सौख्यविज्ञानसारः से जाना जाता है। इसके पर्याय- मन्त्री वाचस्पतिगुरुसुराचार्यदेवेज्यजीवाः -बृहस्पति के- मंत्री, वाचस्पति, गुरु, सुराचार्य, देवेज्य और जीव आदि कहे गये हैं। कुण्डली में इसके कारक होने पर किन-किन वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करता है उसको प्रस्तुत करने के लिये यह शोधपत्र प्रस्तुत किया जा रहा है।
1-ब्राह्मण, 2-शिक्षा में प्रतिष्ठित, 3शिक्षक-प्रशिक्षक, 4-कर्तव्यपरायणता, 5-रथ/श्रेष्ठ वाहन, 6-गाय आदि, 7-सेना, 8-इकट्ठा किया हुआ धन, 9-मीमांसा, 10-निधि/संपत्ति, 11-घोड़ा, 12-दही, 13-बड़ा शरीर/विशाल शरीर, 14-प्रताप, 15-कीर्ति, 16-तर्क ज्योतिष/खगोलविद्, 17-पुत्र, 18-फौज, 19-पेट की बीमारी, 20-हाथी आदि जैसे मंहगे बडे वाहनों की सम्पत्ति, 21-वेदान्त/दर्शनादि, 22-पिता का पिता/बाबा आदि परिवार के बडे-बुजुर्ग लोग, 23-महल, 24-गोमेद रत्न, 25-बडे भाई, 26-दादा, 27-राजा/शासक, 28-शिशिर ऋतु, 29-क्रोध, 30-रत्न व्यापारी, 31-शरीर का स्वास्थ्य, 32-सुन्दर महल, 34-राज्य की ओर से सम्मान, 35-ऊरु स्थल (लोक में जंघा), 36-देवता, 37-तप, 38-दान/मदद करने की प्रवृत्ति, 39-धर्म/दायित्व, 40-परोपकार, 41-समदृष्टि/सबको बराबर मानने वाला, 42-उत्तराभिमुख, 43-गोल, 44-पीला रंग, 55-गांव में रहने वाला, 56-उत्तर दिशा में प्रसन्न रहने वाला, 57-सखा/मित्रता, 58-डोली/सुखमय सवारी, 59-व्याख्यान शक्ति, 60-मेदा, 61-मध्यम दर्जे का कपडा, 62-नये घर का सुख, 63-वृद्ध/बुजुर्ग, 64-मन्त्र/युक्ति/उपाय, 65-द्विज, 66-तीर्थ/पवित्र स्थान, 67-जानु, स्वर्गलोक जाना, 68-सुख-सुविधा संपन्न घर, 69-समझने की विशेष बुद्धि, 70-विशेष ज्ञान, 71-काव्य, 72-मकान का शिखर, 73-सभा को प्रसन्न/आकर्षित करना, 74-सिंहासन, 75-ब्रह्मा की मति की स्थापना, 76-हमेशा बलवान् रहना, 77-महीने का सूचक, 78-पात्र/योग्यता, 79-वैदूर्य रत्न, 80-अग्निष्टोम यज्ञ का महान् फल, 81-मिठास/मधु रस, 82-सात्त्विकता, 83-सुख-दुःख, 84-दीर्घाकार, 85-शुभ, 86-दूसरों के विचारों को समझ जाना, 87-स्वर्ण भूषण बनाना आदि, 88-वात, 89-कफ, 90-पुखराज, 91-वेद, 92-चमक, 93-पत्थर की मूर्ति की शिवपूजा, 94-धर्म में निष्ठा, 95-चारों ओर से सुसज्जित गाड़ी में यात्रा, (1 से लेकर 95 तक उ.का.5-38/39/40/41) 96- लंबा पेट (जा.पा.2-57), 97- गुल्म रोग(जा.पा.2-57), 98- उदर रोग(जा.पा.2-57), 99- डायबिटीज(रो.वि.), 100- विपाशा-शतद्रु(रो.वि.), 101- अभिचार(रो.वि.), 102- जटामासी(बृ.सं.), 103- तगर(बृ.सं.), 104- कूट(बृ.सं.), 105- मोम(बृ.सं.), 106- लता से उत्पन्न(बृ.सं.), 107- कूट-पारा(बृ.सं.), 108- शिलाजीत(बृ.सं.) आदि का विचार गुरु से करना चाहिये।
संदर्भ सूची / References
1-जातकपारिजात
2- बृहत्संहिता
3-बृहज्जातकम्
4- फलदीपिका
5-उत्तरकालामृतम्
6-काटवे
7-ज्योतिषशास्त्र में रोगविचार
Amanda Martines 5 days ago
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