पंचांग परिचय

Author
आचार्या स्मिता पण्‍डित
ज्‍योतिषाचार्या

पञ्चांग परिचय  :-
काल का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र के द्वारा होता है।ज्योतिष शास्त्र का काल विवेचनात्मक रूप ही पञ्चांग है।संसार के सभी शुभाशुभ कर्म का आधार पञ्चांग होता है।पञ्चांग के पांच अंग होते है- दिन (वार),तिथि, करण, नक्षत्र और योग होते है। पञ्चांग मे इन पाँचो अंगो के अतिरिक्त सूर्य और चंद्र का स्पष्टीकरण, व्रत-उपवास, पर्व, मुहूर्त्त भी लिखे होते है।


1 - दिन (वार) :-
                  रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार। यह सात दिन (वार) होते है।दिन के आरम्भ के पहले घण्टे (होरा) का जो स्वामी होता है उसी ग्रह के नाम से उस दिन का नाम रखा गया है। जैसे रविवार का नाम रविवार इसलिए रखा गया क्योंकि रविवार के पहले घण्टे का स्वामी सूर्य होता है और सोमवार के पहले घण्टे का स्वामी चंद्र (सोम) होता है।

2 - तिथि :-
               सूर्य और चंद्रमा के मध्य की दूरी जब 12 अंशो की हो जाती है तब एक तिथि का मान पूरा हो जाता है।जैसे अमावस्या पर सूर्य और चन्द्रमा तुल्य, राशि, अंश, कला पर रहते है। चन्द्रमा शीघ्र गतिक होने के कारण क्रमशः आगे चलता हुआ सूर्य से आगे निकल जाता है।यदि अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्रमा मेष राशि के शून्य अंश पर हो पर इन दोनो के मध्य जब 12 अंशो की दूरी होगी तब एक तिथि पूरी होगी। यह 12 अंशो का अन्तर होने मे जो समय लगता है वही काल एक तिथि का है।
               1 तिथि         = 12 अंश 
               30 तिथिया   = 12×30 = 360
पूर्णमासी के दिन सूर्य और चन्द्र की दूरी 180 अंशो की होती है। शुक्ल और कृष्ण दोनो पक्षों मे पन्द्रह-पन्द्रह तिथिया होती है।
जैसे  - प्रतिपदा, द्वितीया,तृतीया,चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी,सप्तमी, अष्टमी,नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी,चतुर्दशी, पूर्णिमा अथवा पञ्चदशी।यह पन्द्रह तिथिया होती है।कृष्ण पक्ष मे पूर्णिमा के स्थान पर अमावस्या ग्रहण करते है।

3 - करण :-
              एक तिथि मे दो करण होते है या हम यह कह सकते है की तिथि के आधे भाग को करण कहते है।जब सूर्य और चंद्रमा के मध्य 6 अंश का अन्तर होता है तब एक करण बनता है।करण ग्यारह होते है। जिसमे सात चर संज्ञक और चार स्थिर संज्ञक होते है। 
              चर करणो के नाम- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर,वणिज, विष्टि (भद्रा। 
              स्थिर करणो के नाम- शकुनि, चतुष्पद, नाग, किंस्तुघ्न। शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के उत्तरार्द्ध मे बव करण, द्वितीया के पूर्वार्द्ध मे बालव करण, द्वितीया के उत्तरार्द्ध मे कौलव करण आते है। इसी प्रकार सातो करण क्रमशः आते है।एक माह मे इनकी आठ आवृत्तिया होती है।
              कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के उत्तरार्द्ध मे स्थिर करण आरम्भ होता है।जैसे- कृष्णपक्ष चतुर्दशी के उत्तरार्द्ध मे शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्द्ध मे चतुष्पद, उत्तरार्द्ध मे नाग और शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्द्ध मे किस्तुघ्न करण होता है।

4 - नक्षत्र  :-
               बारह राशियो को 27 भागो मे बाटा गया है। जिन्हे नक्षत्र कहते है। इन नक्षत्रो मे जितने भी तारे आते है उनसे विभिन्न आकृतिया बनती है।इन आकृतियो को नक्षत्र कहते है।
               नक्षत्रो के नाम इस प्रकार है :-
  1- अश्विन, 2- भरणी, 3- कृत्तिका, 4- रोहिणी,  5- मृगशिरा, 6- आर्द्रा,  7- पुनर्वसु, 8- पुष्य,  9- आश्लेषा,  10- मघा, 11- पूर्वाफाल्गुनी, 12- उत्तराफाल्गुनी, 13- हस्त, 14- चित्रा, 15- स्वाती, 16- विशाखा, 17- अनुराधा, 18- ज्येष्ठा, 19- मूल, 20- पूर्वाषाढ़ा, 21- उत्तराषाढ़ा, 22- श्रवणा, 23- घनिष्ठा, 24- शतभिषा, 25- पूर्वाभाद्र, 26- उत्तराभाद्र , 27- रेवती। 
  उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का चतुर्थ चरण और श्रवण नक्षत्र का प्रथम पञ्चदशांश मिलाकर अभिजित नक्षत्र का मान होता है।इस प्रकार अभिजित सहित नक्षत्रो की संख्या 28 मानी जाती है। 

5 - योग  :-
   सूर्य और चंद्रमा की गति योग से 27 योग बनते है।इन्हे विष्कुंभादि योग कहा जाता है।
 विष्कुंभादि योगो के नाम  :-
                         1- विष्कुम्भ,2- प्रीति, 3- आयुष्मान, 4- सौभाग्य, 5- शोभन, 6- अतिगण्ड, 7- सुकर्मा, 8- धृति, 9-शूल, 10- गण्ड, 11- वृद्धि, 12- ध्रुव, 13- व्याघात, 14- हर्षण, 15- वज्र,  16- सिद्धि ,17- व्यतीपात,  18- वरीयान, 19- परिध,  20- शिव, 21- सिद्ध, 22- साध्य, 23- शुभ,  24- शुक्ल,  25- ब्रह्म, 26- ऐन्द्र,  27- वैधृति।

संदर्भ सूची / References

संदर्भ सूची :-
1- भारतीय कुन्डलीविज्ञान
2- सूर्य सिद्धांत 
3- भारतीय ज्योतिष फलित- केन्द्रीय संस्कृत      विश्वविद्यालय 
4- ज्योतिष विश्वकोश- निर्माता-डाॅ भूपेंद्र पाण्डेय


3 Comments

Amanda Martines 5 days ago

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