गृह प्राप्ति योग
किसी मानव के भाग्य में गृह सुख है या नहीं इसका विस्तृत विवेचन ज्योतिष शास्त्र के ममर्ज्ञ आचार्यों ने किया है । इस प्रसंग के कुछ महत्त्वपूर्ण योगों को यहाँ बताया जा रहा है ।
❖ग्रहों के अनुसार गृृृह योग
❖ग्रह दशाओं के आधार पर गृहयोग
❖ जातकालङ्कार नामक ग्रन्थ में आचार्य गणेश कवि इस वाक्य से स्पष्ट करते हैं कि जिसके जन्म समय में स्वराशि में स्थित चतुर्थेश यदि लग्नेश के साथ हो तो उस व्यक्ति को अकस्मात् श्रेष्ठ घर प्राप्त होता है । किन्तु यह युति यदि चतुर्थ भाव के अतिरिक्त अन्य किसी भाव में बने तो गृह प्राप्ति नहीं होती । इसी योग को आचार्य जीवनाथ ने भी भावकुतूहल तथा भावप्रकाशमें स्वीकार किया है । यथा -
❖ स्वक्षेत्रेतुर्यनाथस्तनुपतिसहितःस्यादकस्माद्गृहाप्तिः
सौहार्द वासुहृद्भिस्तदितरगृहगश्चेद्गृहालभ्ययोगः ।
भावकुतूहल / 15 /14
❖ यदि लग्नेश और चन्द्र चतुर्थभाव में स्थित होकर शुभग्रह से युक्त या दृष्ट हों तथा चतुर्थेश लग्न में हो तो चतुर्थेश की दशा में अकस्मात् ही नवीन गृह , भूमि , गड़ा हुआ धनादि प्राप्त होता है । जैसा कि इस श्लोक में मिलता है -
तुरीयभवनस्थितौतनुपतिक्षपानायकौ, शुभग्रहयुतेक्षितौसुखपतिर्यदालग्नगः ।
तदैवनवमन्दिरक्षितिनिखातवित्तागमः, सुखाधिपदशागमेतनुभृतामनायासतः ।।
भावप्रकाश / 5/ 4 / 5
❖ बृहत्पाराशरहोराशास्त्र के कर्ता महर्षि पराशर के अनुसार यदि चतुर्थेश चतुर्थ भाव में स्थित हो या लग्नेश चतुर्थ भाव में होअथवा दोनो ही चतुर्थ में रहें तथा शुभ ग्रह की दृष्टि भी हो तो जातक को घर का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।।
❖ यदि चतुर्थेशस्वराशि , स्वनवांश या स्वोच्च राशि में स्थित हो तो मानव को भूमि , वाहन , घर तथा संगीत के वाद्य यन्त्रों का सुख मिलता है।
❖ चतुर्थेश तथा दशमेश दोनों ही एक साथ केन्द्र में या त्रिकोण में रहें तो जातक का निवास निश्चित ही राजमहल होता है । इस सन्दर्भ में महर्षि पराशर स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि -
कर्माधिपेनसंयुक्तेकेन्द्रेकोणेगृहाधिपे ।
राजार्हे सदने वासोजातकस्यभवेद्ध्रुवम् ।।
❖ जिस जातक की जन्मकुण्डली में चतुर्थेश केन्द्र या त्रिकोण भाव में स्थित होकर शुभग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो वह सभी सुविधाओं से सम्पन्न गृह को प्राप्त करता है । किन्तु चतुर्थेश की विपरीक स्थिति होने पर गृह सुख नहीं मिलता है।।
बृहत्पाराशरहोराशास्त्र / 16 /15।।
❖ दशा के अनुसार गृह विचार - जन्मकुण्डली में बनने वाले सभी शुभाशुभ योग जिस फल का संकेत करते हैं उसके प्राप्तिकाल के विषय में ज्योतिष शास्त्र के सभी आचार्यों का मतैक्य है कि योगजन्य फल दशाओं में ही मिलता है । अतःमुख्यतयाचतुर्थेश की शुभ दशा में आदरपूर्वकगृहप्राप्तितथा अनेक प्रकार के वाहनों का सुख मिलता है ऐसा आचार्य जीवनाथ ने भी स्वीकार किया है । भावकुतूहल के दशाफलाध्याय में गुरु की दशा में लक्ष्मी से युक्त घर प्राप्त होता है इस सन्दर्भ में मिलता है –
उर्वीगुर्वीसमायात्यवनिपतिकुलान्नायकत्वंजनानां
कान्तादन्ताबलाग्रागम इह कमलालङ्कृतावासशाला ।
मैत्री सद्भिर्महद्भिर्गुरुजनगरिमाकालिमारातिकास्ये
हृद्याविद्यानवद्याभवति च वचसामीशितुःपाककाले ।।
❖चतुर्थ भाव के स्थिर कारक बुध की दशा में नया घर मिलता है ।
प्रज्ञासौख्यमतीवपाकसमये शाला विशाला कवेः।।
भावकुतूहल / दशाफलाध्याय /13
इस उक्ति से सिद्ध होता है कि शुक्र की दशा भी विशाल गृह प्रदायक मानी गई है तथा जातक की जन्मकुण्डली में जो ग्रह स्वराशि में स्थित हो उस ग्रह की दशा भी अति रमणीय विहार योग्य घर देने वाली कही गई है ।
❖ इस प्रकार से ज्योतिषीय योगों के आधार पर गृह सुख का विचार करने के पश्चात् ही उस श्रेणी के घर निर्माण के लिये क्रियान्वित होना चाहिए । यदि जन्म कुण्डली में गृह नाश योग हो तो उसे जानने से पूर्वानुमान के कारण अत्यधिक हानि होने से बचा जा सकता है ।
Amanda Martines 5 days ago
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ReplyMarie Johnson 5 days ago
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