वास्तुशास्त्र की प्राचीनता
भारतीय वास्तुशास्त्र अत्यन्त प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रदत्त वह ज्ञान राशि है। जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कि योगविद्या, आयुर्वेद, ज्योतिष आदि अन्य सभी वैदिक शास्त्र हैं। वास्तुशास्त्र के तत्वदर्शी और मर्मज्ञ महर्षियों ने लोक कल्याण हेतु अपने को तपस्या की अग्नि में तपा कर वास्तु रूपी ज्ञान के सार को प्राप्त किया। यह वास्तु शास्त्र उतना ही प्राचीन है, जितनी की सृष्टि की उत्पत्ति।
वास्तव में इसकी प्राचीनता सृष्टि की संरचना की स्थापना से ही स्पष्ट हो जाती है । क्योंकि इसी ब्रह्मांड में पृथ्वी, ग्रह, नक्षत्र, तारा, उल्कापिण्ड, धूमकेतु आदि की यथा क्रम में सुव्यवस्थित स्थापना ही है, जिसके सम्यक् संचालन और संतुलन के साथ स्वशक्ति से गतिमान रहकर यह असंख्य प्राणियों का आश्रय बनता है ।
स्वशक्त्या भूमिगोलोऽयं निराधारोऽस्ति खे स्थितः ।
पृथुत्वात्समवद् भाति चलोप्यऽचलवत् तथा।
आवृतोऽयं क्रमाच्चन्द्र-बुध-शुक्रार्क भूभुवाम्।
गोलैजीवार्किभानां च क्रमादूर्ध्वोध्वसंस्थितैः।।
- ( गोलपरिभाषा, श्लोक 10-11) )
जिससे इस संसार रूपी भवन में प्रत्येक जीव अजीव जन्म व मृत्यु के चक्र के साथ गतिमान रहते हुए निरंतर संचरित और संसरित होते हैं।
Amanda Martines 5 days ago
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ReplyMarie Johnson 5 days ago
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