वाहन सुख विचार

Author
डॉ.अनिल कुमार
सहायकाचार्य, रा.सं.सं. भोपाल परिसर

वैदिक काल में भी वाहनों का प्रयोग किया जाता रहा है इसके अनेक प्रमाण प्राप्त होते हैं । वेदों तथा पुराणों में देवी-देवताओं की स्तुति तथा अनेक कथा प्रसंगों में उनके वाहनों का भी वर्णन प्राप्त होता है । भगवान् शिव नन्दी वृषभ की सवारी करते हैं , विष्णुभगवान् का गरुड , देवराज इन्द्र का ऐरावत हाथी , माता दुर्गा का सिंह , सरस्वती माता का हंस , कार्तिकेय स्वामी का मयूर , गणेश प्रभु का मूषक तथा सूर्य देव का सात अश्वों वाला रथ वाहन के रूप में सर्वत्र प्रसिद्ध है । आज के इस विकासशील युग में जहाँ मानव की महत्त्वकाक्षाओं की वृद्धि हो रही है । वहीं अपने सुख-सुविधाओं के भी निरन्तर विकास हेतु नए-नए संसाधनों की संरचना करता जा रहा है । आज के इस आधुनिक युग में भ्रमणशील प्रकृति वाले मानव ने अपने इस स्वभाव को जीवन की आवश्यकता बना दिया है । मानव जीवन में शिक्षा , व्यवसाय , तीर्थ यात्रा हेतु तथा दैनिक उपयोग की वस्तुओं के संग्रह के उद्देश्य से निरन्तर यात्रा करनी पड़ती है । यह यात्रा कभी समीपवर्ती स्थल की होती है तथा कभी किसी दूर स्थान पर जाना पड़ता है । इसीलिए विद्वानों ने जीवन को जीवनयात्रा कहकर सम्बोधित किया है । इस वर्तमान समय में जब गाँव शहरों के रूप में , शहर नगरों में , तथा नगर महानगरों के रूप में परिवर्तित हो रहे हैं । तब किसी भी कार्य को सम्पादित करने के लिए जाना होतो किसी वाहन की परमावश्यकता प्रतीत होती है । किन्तु वाहन भी सार्वजनिक तथा निजी भेद से दो प्रकार के होते हैं । सार्वजनिक वाहन सर्वत्र एवं सर्वदा उपलब्ध नहीं हो पाते अतः निजी वाहनों के महत्त्व को समझते हुए वाहन सुख का विचार ज्योतिषीय दृष्टि से यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है । ज्योतिष शास्त्र में वाहन सुख विचार हेतु वाहन प्रदायक योग , वाहन का स्तर , वाहन प्राप्ति काल , वाहन सम्बन्धित अशुभयोग जैसे प्रमुख बिन्दुओं का उल्लेख प्राप्त होता हैं ।

इस आधुनिक काल में यातायात हेतु वाहन की अनिवार्यता के कारण प्रत्येक व्यक्ति को वाहन खरीदना परमावश्यक प्रतीत हो रहा है । किन्तु वाहन खरीदते समय दो प्रमुख समस्याओं का सामना प्रायः सभी को करना पडता है । प्रथम कैसा और कब वाहन लें ? तथा दूसरी समस्या यह है कि आज जब सर्वत्र वाहन दुर्घटनाओं से आतंक का वातावरण बना हुआ है । प्रत्येक परिवार में नये वाहन को खरीदते समय अपार खुशी के साथ-साथ वाहनदुर्घटना का भय भी व्याप्त रहता है ।अतः इन समस्यओं के समाधान के लिए लोककल्याण कारक ज्योतिषशास्त्र में यह विधि प्राप्त होती है कि वाहन सुख विचार करते हुए सर्वप्रथम वाहन प्रदायक योगों तथा वाहनप्राप्ति की योगाश्रित दशा आदि के द्वारा वाहन प्राप्ति का निश्चय कर ,वाहन के स्तर का भी निर्धारण करना चाहिए तथा वाहनदुर्घटना योगों एवं दुर्वाहन प्राप्ति योगों को जन्मकुण्डली में देखकर निश्चय करने से होने वाली हानि को कम किया जा सकता है ।

ज्योतिष शास्त्र की फल विचार परम्परा का भली-भांति अवलोकन करने पर यह महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्राप्त होता है कि किसी भी भाव का फल विचार करते समय भाव , भावेश तथा कारक कीशुभाशुभ स्थिति का विचार करना अनिवार्यहै । वाहनसुख का निर्धारण करने के लिए द्वादश भावों में से चतुर्थ भाव को वाहनसुख का प्रमुख भाव मानते हुए कवि कालिदासउत्तरकालामृत में लिखते हैं कि- विद्यां राज्यगृहप्रयाणनरसन्नौकादिसद्वाहना । न्यभ्यङ्गो जननी च बन्धुसुहृदौ जात्यम्बरे वापिका ।। 1 भाव के पश्चात् भावेश का वर्णन प्राप्त होता है । यहाँ भावेश से अभिप्राय उस भाव विशेष के स्वामी से है जिस भाव की चर्चा हो रही है । अतः वाहनसुख का भाव चतुर्थभाव तथा चतुर्थभाव में स्थित राशि का अधिपति ग्रह ही भावेश होता है । इसी क्रम में चतुर्थ भाव के कारक के रूप में बुध एवं चन्द्र को महर्षियों ने स्वीकार किया है ।- तरणिरमरमन्त्री मङ्गश्चन्द्रसौम्यौ गुरुरथ शनिभौमौ शुक्र आर्किः क्रमेण । अमरगुरुदिनेशौ मन्दभानुज्ञजीवाः सुरगुरुरपि मन्दः कारकाः स्युर्विलग्नात् ।।2 भावों के कारकग्रहों के साथ-साथ कुछ वस्तुओं पर भी ग्रहों का विशेष कारकत्व माना गया है इसी का उल्लेख करते हुए आचार्य वैद्यनाथ ने “पत्नीवाहनभूषणानि मदनव्यापारसौख्यं भृगोः”3इस वाक्य सेस्पष्ट किया है कि पत्नी , वाहन , आभूषण , काम , व्यापार तथा सुख का कारक शुक्र है । वाहनप्रदायक योग किसीभी मानव के जीवन में वाहन सुख कैसा रहेगा ? इसका निर्धारण करने के लिए ज्योतिष शास्त्र के त्रिकालज्ञ पूर्वाचार्यों ने अनेक योगों को व्यक्त किया है । ये सारे योग ग्रहों की भावविशेष पर होने वाली युति-दृष्टि से बनते हैं । वाहन प्राप्ति के ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण योगों को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है । वाहन सुख से सम्बन्धित मुख्य भाव चतुर्थ भाव है अतः वाहनसुख के योगों में चतुर्थभाव से बनने वाले योगों की संख्या सर्वाधिक उपलब्ध होती है । चतुर्थ भाव में किसी ग्रह की स्थिति के आधार पर वाहन सुख प्राप्ति का विचार प्रायशः सभी आचार्यों ने किया है । चन्द्र की चतुर्थ भाव में स्थिति मात्र को आधार बनाकर सारावली में प्राप्त आचार्य कल्याण वर्मा के इस कथन बन्धुपरिच्छदवाहनसहितो दाता चतुर्थगे चन्द्रे ।4से स्पष्ट होता है किचन्द्रमा के चतुर्थ स्थान में स्थित होने पर वाहन तथा बन्धु सुख प्राप्त होता है । जातकाभरण के अनुसार शुक्र यदि चतुर्थभाव में स्थित हो तो मानव वाहन , वस्त्र , सुगन्धित द्रव्य आदि से युक्त होता है । 5दशम भाव से भी वाहनप्राप्ति का विचार आचार्यों ने किया है । दशम भाव में सूर्य के स्थित होने पर वाहन , बन्धु , पुत्र तथा धन से युक्त मानव होता है ऐसा सारावली के इस श्लोक में आचार्य कल्याण वर्मा ने प्रतिपादित किया है – अतिमतिरतिविभवबलो धनवाहनबन्धुपुत्रवान् सूर्ये । सिद्धारम्भः शूरो दशमेऽधृष्यः प्रशस्यश्च ।।6 चतुर्थेश की स्थिति के अनुरूप वाहन सुख प्राप्ति का निर्देश करते हुए महर्षि पराशर ने बृहत्पाराशर होराशास्त्र में उद्घोषित किया है कि चतुर्थेश स्वराशि में या उच्चराशि में या स्वनवांश में स्थित हो तो भूमि , यान , गृहादि का सुख मिलता है । इसी प्रकार चतुर्थेश केन्द्र में हो, शुक्र भी केन्द्र में हो तथा बुध स्वोच्चराशि में स्थित हो तो वाहन सुख से युक्त जातक होता है । यथा – स्वर्क्षांशतुङ्गगे तुर्यनाथे सुखमनुत्तमम् ।गृहभूयानमात्रादिजातं वाद्यादिजं तथा॥ सुखेशे केन्द्रभावस्थे तथा केन्द्रे स्थिते भृगौ । शशिजे चोच्चराशिस्थे यानसौख्यं वदेद् बुधः ॥ 7 चतुर्थ भाव तथा चतुर्थेश (दोनों) की शुभस्थिति के अनुसार आचार्यों ने वाहन सुख प्राप्ति के अनेक योगों का वर्णन किया है । इसी सन्दर्भ में आचार्य वैद्यनाथ जातकपारिजात ग्रन्थ में वाहन सुख हेतु चतुर्थभाव तथा चतुर्थेश की अनुकूल स्थितियों को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जिस मनुष्य के जन्माङ्ग चक्र में चतुर्थेश तथा चतुर्थ भाव दोनो ही बली होकर शुभग्रहों से दृष्ट हों तो उसे वाहनादि सुख प्राप्त होता है । यदि बुध से युक्त चतुर्थेश चतुर्थ भाव में स्थित हो तथा शुभग्रह से दृष्ट होकर शुभग्रह के नवांश में स्थित हो तो वाहनादि सुख की प्राप्ति होती है । जैसा कि इस श्लोक में वर्णित है - वाहनेशे बलयुते यानराशौ बलान्विते । शुभग्रहेण संदृष्टे वाहनादिफलं वदेत् ।। वाहनेशे वाहनस्थे सेन्दुजे शुभविक्षिते । शुभखेचरराश्यंशे वाहनादिफलं वदेत् ।।8 इसी क्रम में जातकाभरण नामक ग्रन्थ में यह योग प्राप्त होता है -वाहनेशे बलयुते वाहने शुभसंयुते । शुभग्रहेण सन्दृष्टे वाहनादिफलं भवेत् ।।9 अर्थात् चतुर्थेश बली हो तथा शुभग्रहों से दृष्ट चतुर्थभाव में शुभग्रह स्थित हो तो मानव को वाहनादि की प्राप्ति होती है । वहीं अग्रिम योग में उल्लिखित है कि यदि चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह हो , चतुर्थेश केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो तथा नवमेश परमोच्च अंश पर हो तो जातक को वाहन सुख प्राप्त होता है ।जैसा कि इस श्लोक में वर्णित है –


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Amanda Martines 5 days ago

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Marie Johnson 5 days ago

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